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सिरिसंतिनारि
विहरतस्स भगवओ के विहु समणा हवंति गयपावा । के वि हु गिहत्थधम्मं पडिवजंती पबरभावा ॥२॥७३०९॥ अविरयसम्मद्दिट्टी के विहु जायंति, भद्दगा के वि । अन्ने उ पावकम्मा अभव्यमाई न बुज्झति ॥ ३ ॥ ७३१० ॥ जह उइए वि हु सूरे उलूयमाईण होइ अंधत्तं । तह उ अभव्वाईणं उइए वि हु संतिदिणनाहे ॥४॥७३११॥ जह कंकडुयकणाणं न होइ सिद्धी पभूयजलणे वि । तह जिणवरजलणे वि हु अभव्वमाईण न हु सिद्धी ||५||७३१२॥ जह ऊसरभूमी न होइ धन्नं सुमेहवरिसे वि । तह जिणजलहरदेसणनीरेण न ताण पडिबोहो || ६ ||७३१३ ॥ जह वालुयभूमीए न कुणइ भंड सुकुंभयारो वि । तह उ अभव्वनराण वि न कुणइ बोह जिणवरो वि ॥७॥७३१४॥ जह मुग्गसेलयस्स उ भेओ न हु होइ दोणमेहे वि । तह सिरिसंतिजिणे वि हु न होइ बोहो अभव्वाण ॥८॥७३१५॥ जम्हा एस सहावो ताण अभव्वाण पावबुद्धीण । होइ न धम्मम्मि मई घूयाइपयासमाइ व्व ||९||७३१६॥
जत्थ य जत्थ य विहरड् भयवं सिरिसंतिणाहजिणइंदो । तत्थ उ तत्थ उ जायइ संती सव्वस्स लोगस्स ॥१०॥७३१७॥ दुभिक्ख - डमर - मारी - इइ-संगामप्पभि (? भी) इदुक्खाणि । विहरते जिणइंदे जोयणसयमज्झि न भवति ॥ ११ ॥७३१८॥ भूमी सुहसंचारा फल-फुल्लसमाउला य रुक्खगणा । पणुवीसजोयणाणं मज्झम्मि हवंति सुभभावा ॥१२॥७३१९॥ इय केत्तियं व भन्नउ सिरिजिणवरपुण्णपयडमाहप्पं । अम्हारिसेहिं अचंततुच्छबुद्धीपयारेहिं ॥१३॥७३२०॥
१. "इईस' जे० । ईइस जे० ॥
बारसमं भवग्गणं
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