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________________ रायजियसत्तुणो अक्खाणयं सिरिसंति इय पनरस अइयारिहिं, पावपयारिहिं, कम्मयओ बउवण्णियइ । नाहचरिए परिभोगुवभोगू, सावयजोगू, देवच्चंदिहि मन्नियइ ॥२२॥६६१६॥ बहुजीवखयंकर, पाव भयंकर कम्मायाणई मई भणिय । ता चयह ससत्तीए गुणवयभत्तिए, जइ सुहु इच्छहु सिवजणिउ ॥२३॥६६१७॥ * एत्थं वि हु दिटुंतो उवभोगे होइ रायजियसत्तू । परिभोगम्मि य जाणह दियाइणी णिच्चमंडीया ॥२४॥६६१८॥ अवि य "एत्थेव भरहवासे वसंतपुरनयरसामिओ आसि । नामेणं जियसत्तू, परक्कमेहिं पि जियसत्तू ॥१॥६६१९॥ तस्सऽत्थि सुरगुरु पि हु बुद्धीए चुउबिहाए जो जिणइ । रज्जभरपालणसहो सुबुद्धिनामो महामंती ॥२॥६६२०॥ ते य नरेंदा-ऽमचा परोप्परं नेहनिभरा धणियं । पइदियह चिटुती रज्जं सव्वं पि पालेता ॥३॥६६२१॥ एक्कम्मि य दिवसम्मि पडिहारो पणमिऊण विन्नवइ । 'देव ! दुवारे चिटुइ एगो हेडाउओ पवरो' ॥४॥६६२२॥ आणाविओ य रन्ना, पविसित्ता विन्नवेइ 'देव मए । तुम्ह कए आणीया अइदूराओ हया दोन्नि ॥५॥६६२३॥ अचंतपवररूवा उत्तुंगतणू समुद्धरग्गीवा । नीसेसआसलक्खणसमन्निया पवणसमवेया' ॥६॥६६२४॥ - - १. सुह जे० । सुहं का० ।। २. दृश्यतां चतुर्थ परिशिष्टम् ।।
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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