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________________ बारसमं भवग्गहणं सिरिसंति- एवं पहाणगीयं हाहा-हूहूहिं सत्तसरजुत्तं । एगवीसमुच्छणड्ढं तिगामसुद्धं कयं रम्मं ॥२१८॥४८१८॥ नाहचरिए रंभा-तिलोत्तिमा-उव्वसीहिं तह मेणगा-सुकेसोहिं । बहुहाव-भाव-सुकडक्खरहिरं नच्चियं नढें ॥२१९॥४८१९॥ एवं वच्चंतो भयवं नयणमालासहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणो, अंगुलिमालासहस्सेहिं दाइजमाणो, अंजलिमालासहस्सेहिं वदिजमाणो, वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्यमाणो, मणोरेहमालासहस्सेहिं पत्थिज्जमाणो, भवणमालासहस्साई समइच्छ- माणो निग्गंतूणं गयपुराओ पत्तो सहसंबवणं नाम उज्जाणं । तत्थ य समुत्तिण्णो सिबियाओ । मोत्तूण य आभरणाई लोयं ५ काउमाढत्तो, अवि य* अइनिद्ध-कुडिल-कुंचिय-दीहर-सुकुमाल-सुहम-गुणकलिए । वरइंदनील-मरगय-भमरंजण-गवलसमकेसे ॥२२०॥४८२०॥ पंचहिं अट्ठाहिं जिणो उप्पाडइ, ते तओ सहस्सक्खो । वत्थतेण पडिच्छइ पक्खिवइ य खीरजलहिम्मि ॥२२१॥४८२१॥ एत्थंतरम्मि उच्चरइ जाव 'सामाइयं' जिणो ताव । सहस त्ति तूरसद्दो मूयलिओ सक्कवयणेणं ॥२२२॥४८२२॥ जेटुस्स किण्हचाउद्दसीए भरणीए संजुए चंदे । सिद्धाण नमोक्कारं काउं पडिवज्जइ चरितं ॥२२३॥४८२३॥ * छटेणं भत्तेणं सहसेणं नरवराण परियरिओ । गिण्हित्ता सामइयं विहरइ वसुहं अपडिबद्धो ॥२२४॥४८२४॥ अह कुणइ य विविहतवं नाणाभिग्गहपरायणो धीरो । चउविहनाणसमग्गो धीबलकलिओ महासत्तो ॥२२५॥४८२५॥ ५७२ १. दृश्यतां चतुर्थ परिशिष्टम् ।। २. रहमालासहस्साई समइ पा० ॥ ३. °ए जुत्तए चंदे जे० ।। ४. °णई वि त्रु० ।।
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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