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सिरिसंतिनाहचरिए
बारसमं भवग्गहणं
दिलहिं वत्थनियर सुविसिटुय, दिजहिं पट्टण-गामई लटुय । इय अन्न पि वि जो जं मग्गइ, तं तसु झत्ति विहिज्जइ अग्गइ ॥१९६॥४७९६॥ इय जं गेहह हुतउं दिज्जइ, तासु संख किर केण लहिज्जइ ? । जं पुण इंदाऽऽएसिं दिजइ, तं परिसंखिवि तुम्ह कहिनइ ॥१९७॥४७९७॥ पुण्णा कोडि एग दीणारह, अन्नु वि अटु लक्ख निरु सारहं । सूरोदउ आईए करेविणु दिज्जइ जा दो पहर ज्वेविण ॥१९८॥४७९८॥ अन्नि वि करिवरखंधारूढा उग्घोसहिं नर निरु आरूढा । जह किर 'वरु वरेह भो लोयहु ! म आसंकिय चित्तिं जोयहु ॥१९९॥४७९९॥ वरिसह तणउं दाणु मेलिजइ ज तियसाहिबि सयमाणिज्जइ। कोडिहिं सयई तिणि संपुण्णई, अनु अट्ठासीकोडिहिं गन्नई ॥२००॥४८००॥ असिइ लक्ख तह अन्न सुणेज्जहु संवच्छरि एत्तिउ जाणेज्जहु । पत्ताऽपत्त विसेसविवजिउ जिणह दाणु एवंविहु सजिउ ॥२०१॥४८०१॥
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१. हु त्रु० ।। २. कोडिसय त्रु० ॥ ३. अन्नि जे० का० ।।