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सिरिसंतिनाहचरिए
[बारसमं भवग्गहणं]
समेक्कारसमाई भवगहणाईं समासओ भणिउं । संपइ बारसमभवं जिण - गणहरसंभव भणिमो ॥१॥४६००॥
"अस्थि संखाईयदीव-समुद्दमज्झसंप्रियसासयसरूवो जंबुद्दीवो नाम दीवो । तत्थ य छक्खंडभारहवासमज्झिमखंडमज्झडियकुरुजणवयालंकारभूयं अत्थि हत्थिणाउरं नाम नयरं । जत्थ य बहुप्पयाराओ वीहीओ । तहा य- काओ वि महावाणीओ व् ससुवण्णाओ, काओ वि वरसुत्तहारनिम्मियं देवउलपंतीओ व्व सुरयणाओ, काओ वि कांउरिसचेट्ठाओ व्व वित्थारियदोसाओ, काओ वि सुयणजणचित्तवित्तीओ व्य बहुसिणेहाओ, काओ वि भिल्लपल्लीओ व्य सञ्च्चविज्जंतमास-गोधूमाओ, काओ वि सावियाओ व्व सुवासाओ, काओ वि अविहवनारीओ व्व सुधणियाओ, काओ वि महाडईओ व्व दीसंतसरासणबाणाओ, काओ वि मंदपुण्णजणचेडाओ व्व संघडिजंतबहुबसणाओ, काओ वि जिणपडिमाओ व्व सुविरइयपूयाओ, काओ वि विलासिणीओ व्व पयडियलोहाओ, काओ वि महुरापुरीमल्लरंगभूमीओ व्व उत्थलिज्जत कंसाओ, काओ वि रइपयट्टपोढमहिलाओ व्व पयडियमणियसरियाओ, काओ वि सुसाहुजणमुत्तीओ व्व १० पडियग्गियपत्ताओ, काओ वि वियाउरीओ व्व बहुपसवाओ, काओ वि वरपासायपतीओ व्व सुसुत्ताओ, काओ वि पणगणाओ व् बहुभोजाओ, काओ वि नडपेच्छाओ व्व बहुरंगाओ, काओ वि ईसरजणभंडारभूमीओ व्व बहु
१. कविवा का० ॥। २. 'यदेउल' जे० त्रु० ॥ ३. कारि त्रु० ॥
बारसमं भवग्गहणं
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