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________________ सिरिसंतिनाहचरिए सुत्तो य सव्वलोगो, बाहिं भंडस्स पत्थरेऊण । जग्गंति य पाहरिया, ता जं जायं तयं सुणह ॥९२॥३०३६ ॥ परिगलियाए रयणीए झत्ति सुव्वंति भीसणा सद्दा | 'हण - हण-हण' त्ति पउरा हलबोलरवेण सम्मिस्सा ॥ ९३॥३०३७॥ किंच हक्क पोक्कार बोक्कंति भडनाहला, सुब्बए तह य खरसद्दिया काहला । वज्रए पहिया भीमसद्दाउला, दीसए भिल्लसेणा तहिं वाउला ॥९४॥ ३०३८ ॥ हक्क मेल्लंत तो उडिया रक्खिया निययदेहम्मि बंधततणुरक्खिया । सत्थवाहो वि बहुपुरिसपरिवारिओ भिडइ भिल्लाण बंदियणजयकारिओ ॥ ९५ ॥ ३०३९॥ एत्थंतरम्मिय पढियं बंदिणा "जो गुरु- देवचरणसरसीरुहसेवाकरणरत्तओ, परउवयार करणिवावारियनियतणु-चित्त-वित्तओ । परभंडसेण्णु सयलु सन्नद्धउ पेक्खिवि अचलसत्तओ, जयउ जयउ सत्थाहु धरायलि चिरु सिरिसुधणदत्त ओ ॥ ९६ ॥ ३०४० ॥" एयं च पढितमायण्णिऊण भणियं भिल्लसेणाहिवइणा - 'रे ! रे ! मह पायच्छित्तियाए साविओ जो पहरइ' । एयं च भिल्लनाहवयणमायणिऊण चित्तलिहियं व संडियं भिल्लसेण्णं । पेसिओ य दूओ इमेण अत्थेण जहा - ' भद्द ! १. य वरस° पा० ।। २. भडसत्तु स पा० ॥ अमयंबनिवस्स कहाणय ३६०
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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