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सिरिसंतिनाहचरिए
मच्छोयरकहाणयं
एतोय तम्मि णयरे अणेयवणिसहसणायगो सेट्टी। अत्थि सुविक्खायजसो जिणदत्तो णाम जिणभत्तो॥१४६॥११७८॥ अन्नो वि तस्स मित्तो तत्थ पुरे वसइ संखदत्तवणी । मेत्तीभावमुवगओ अच्चत्थं तस्स सेट्ठिस्स ॥१४७॥११७९॥ अह अन्नया कयाई णियहट्टे जाव चिटुइ णिविहो । ता सिद्धविहियवेसो संपत्तो तक्करो एगो ॥१४८॥११८०॥ तेण वि वत्थंताओ छोडित्ता रयणमेगमइरम्मं । दिन्नं वणियस्स करे णामेणं संखदत्तस्स ॥१४९॥११८१॥ तेण वि य तयं दटुं चित्तम्मि विगप्पियं जहा एयं । "दीसइ सुतेयरयणं तं मन्ने होहिइ अणग्धं" ॥१५०॥११८२॥ ५ इय चिंतिऊण तेणं पुट्ठो 'किं देमि भद्द! तुह मोल्लं?' तेण वि य तओ भणियं देहि तयं होइ जं उचियं ॥१५१॥११८३॥ अह वणिएण विणियए चित्तम्मि वियक्कियं जहा एसो। "दीसइ अईवमुद्धोज किंची देमि ता मोल्लं" ॥१५२॥११८४॥ तो दिन्ना दम्माणं सहस्स दस तेण तस्स चोरस्स । सो तेहिं चिय तुट्ठो वच्चइ णिययम्मि ठाणम्मि ॥१५३॥११८५॥ विलसइ य जहिच्छाए तं दव्वं बहुविहप्पयारेहिं । एतो य तत्थ मुटुं भंडार केण वि णिवस्स ॥१५४॥११८६॥ तस्स य गवेसणत्थं भमइ तलारो घराघरिं जाव । ता हिंडंतो कमसो संपत्तो तत्थ मणम्मि ॥१५५॥११८७॥ जत्थऽच्छइ विलसंतो सो चोरो बहुविहाहिं कीलाहिं । तं दटुणं तलारो चिंतइ "दव्यं इमस्स कओ?" ॥१५६॥११८८॥ जाव य तयं णिरिक्खइ ता पेच्छइ चोरलक्खणं तम्मि । ते दटुणं चिंतइ "णूणं एसो भवे चोरो ॥१५७॥११८९॥ ता बंधावेमि इमं जेणं जाणामि से फुडं भावं" । इय चिंतिऊण तेणं आइट्ठा णिययपाइक्का ॥१५८॥११९०॥
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