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________________ अध्यात्म GOOGO @@@ परीक्षा मू ॥११३॥ कीवस्स कप्पिअस्सिव इथिए कप्पिआई सिद्धी वि । ण विणा विसिट्टचरियं तासिं तु विसिट्टकम्मखओ ॥१६७॥ पावं तह इत्थित्तं ण य पुण्णफलाण केवलीण हवे । परमासुइभूयाणं ण य परमोरालिओ देहो ॥ १६८॥ एयमजुत्तं जम्हा विचित्तभावा विचित्तकम्मखओ। ण य इत्थित्तं पावं जिणाण पाएण णत्थित्ति ॥ १६९ ॥ | इय इत्थीणं सिद्धी सिद्धा सिद्धंतमूलजुत्तीहिं । एयं असइहंता चिक्कणकम्मा मुणेयवा ॥ १७॥ एयं परमरहस्सं एसो अज्झप्पकणगकसवट्टो । एसा य परा आणा संजमजोगेसु जो जत्तो ॥ १७१ ॥ |आसन्नसिद्धियाणं जीवाणं लक्खणं इमं चेव । तेण ण पवित्तिरोहो भवाभवत्तसंकाए ॥ १७२ ॥ जो पुण भोए भोत्तुं इच्छइ तत्तो य संजमं काउं । जलणंमि पजलित्ता इच्छइ पच्छा स निघाउं ॥ १७३॥ को वा जिय वीसासो विजलयाचंचलंमि आउंमि । सजो निरुज्जमो जइ जराभिभूओ कहं होही ॥ १७४ ॥ देहबलं जइ न दढं तहवि मणोधिइवलेण जइयत्वं । तिसिओ पत्ताभावे करेण किं णो जलं पियइ ॥ १७५॥ बलकालसोयणाए अलसा चिट्ठति जे अकयपुण्णा । ते पत्थिता वि लहुं सोइंति सुहं अपावंता ॥ १७६ ॥ जह णाम कोइ पुरिसो न धणहा निद्धणोवि उज्जमइ । मोहाइपत्थणाए सो पुण सोएति अप्पाणं ॥ १७७ ॥ जो पावं गरहंतो तं चेव निसेवए पुणो पावं । तस्स गरहावि मिच्छा अतहक्कारो हि मिच्छत्तं ॥ १७८ ॥ चुयधम्मस्स उ मुणिणो सुट्टयरं किर सुसावगत्तंपि । पडियंपि फलं सेयं तरुपडणाओ न उचंपि ॥ १७९॥ OOOOOOOOOOOOOOOOOOO 000000 Jan Education Inter For Private Personal use only inelibrary.org
SR No.600058
Book TitleAdhyatmamatpariksha Swopagnyavruttyupeta
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1911
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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