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________________ अध्यात्म परीक्षामू. ॥११२॥ 00000000000000000000004 तेणं सुद्धवओगो चरणं नाणाउ दसणमिवण्णं । कारणकजविभागा सप्तमिय किन्न सिद्धेसु ॥ १४१ ॥ एत्थ समाहाणविही जो मूलगुणेसु होज थिरभावो । सो परिणामो किरिया जुंजणकरणं पडिच्छंतो ॥ १४२ ॥ अन्नह वकजडाणं चंडाणं चंडरुद्दपभिईणं । णेव सिया चारित्तं सुद्धवओगोत्ति काऊणं ॥ १४३॥ चरणं जइ उवओगो जिणाण ता हुंति तिन्नि उवओगा। दोसु अ अंतबूभावे ततिअस्स पकप्पणा मोहा ॥१४४॥ सेलेसीए जत्तो निवित्तिरूवो स चेव थिरभावो । नय सो सिद्धाणं पि य जंतेसिं वीरियं नत्थि ॥ १४५ ॥ अंते य अंतकिरिया सेलेसी अकिरिय त्ति एगट्ठा । नाणकिरियाहि मोक्खो एत्तो चिय जुज्जए एयं ॥ १४६ ॥ नणु जोगनिरोहेणं चारित्तं सासयं परं होउ । अन्नह तेण न मोक्खो उबूभवकाले असंतेणं ॥ १४७ ॥ केई बिंति मुणीणं सहावसमवट्टिई हवे चरणं । तं लद्धसहावाणं सिद्धाणं सासयं जुत्तं ॥ १४८ ॥ चरणरिउणो न जोगा अत्थसमाएण सवसंवरणं । सिद्धे तंमि सहावे समवट्ठाणंति सिद्धंतो ॥१४९ ॥ उज्जुसुयणयमएणं सेलेसीचरमसमयभावित्ति । अंतसमओ चिय जओ हेऊ हेउस्स कजंमि ॥ १५०॥ |नय चरणमोहबन्धो सिद्धाणं अचरणाण संताणं । अविरइपचइओ सो अइप्पसंगो हवे इहरा ॥ १५१॥ जं च जियलक्खणं तं उवइ8 तत्थ लक्षणं लिंगं । तेण विणा सो जुजइ धूमेण विणा हुयासुब ॥१५२॥ णय निच्छयस्स नाणे अभेयवित्ति कहं चरणविरहे । संतं चिय पडिवजइ फलेण जं सो असंतंपि ॥ १५३ ॥ *00000000000000000000 ॥११२॥ in Education anal For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600058
Book TitleAdhyatmamatpariksha Swopagnyavruttyupeta
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1911
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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