SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 9000000000000000000000000 आवस्सयणिजुत्तीइ पयडिपसत्थोदओवएसेणं । णजइ ता सुहयाउ असुहप्पडिवक्खवयणेणं ॥ ७७ ॥ | तत्तत्थसुत्तभणिया एकारस जं परीसहा य जिणे । तेणवि छुहतण्हाई खइअस्स सुहस्स पडिकूलं ॥ ७८ ॥ अस्सायवेअणिजं छुहतहाईण कारणं जाण । पजत्तिसत्तितदुदयजलितंतजलणदित्ताणं ॥ ७९ ॥ नणु छुहतण्हा तण्हामोहुदउप्पत्तिआ रिरंसच । भण्णइ अण्णा तण्हा अण्णं दुक्खं तयटुंति ॥ ८ ॥ मोहाभिणिवेसेणं चउहि वि उमकोठयाइहेऊहिं । पगरिसपत्ता तण्हा जायइ आहारसण्णत्ति ॥ ८१॥ असणाइम्मि पवित्ती एत्तो चिय तं विणा सुसाहूणं । ण जहुत्तविहि विहाणे अइआरो हंदि णिहिटो ॥ ८२॥ एयं विणा ण भुत्ती मेहुणसण्णं विणा जह अबभं । इय वयणंपि परेसिं एएण पराकयं णेयं ॥ ८३॥ ण हु सा उचियपवित्ती व य सुपसत्थझाणहेउत्ति । आहारो व अभं अण्णह तुह होइ णिहोसं ॥ ८४ ॥ आहारचिंतणुब्भवमेयं आहारसण्णमासज । वड्डइ अट्टज्झाणं इटालाभण मूढाणं ॥ ८५॥ तत्तो माणसदुक्खं लहइ जिओ कंदणाइ कुवंतो। लधुंपि इट्टविसयं रईइ चिंतेइ अविओगं ॥८६॥ तो मोहणीजखयओ तब्भवदुक्खाणुबंधविरहेणं । लहइ सुहं सवण्णू चएइ णो पुण छुहं चइउं ॥ ८७॥ घाइं व वेअणीयं इय जइ मोहं विणा ण दुक्खयरं । पयर्ड पडिरूवाउ ता अण्णाओवि पयडीओ ॥ ८८॥ अणुकूलं पडिकूलं च वेअणं लक्खणं सुहदुहाणं । ण हु एसो एगतो अपमत्तजईसु तयभावा ॥ ८९॥ ருமுருருருருரு ஒங்க Jain Educatio n al For Private & Personel Use Only प w w.jainelibrary.org
SR No.600058
Book TitleAdhyatmamatpariksha Swopagnyavruttyupeta
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1911
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy