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________________ अध्यात्म परीक्षा मू० ॥१०८॥ TOROSCOGNREGROCC उस्सग्गववायाणं मित्तीए अह ण भोअणं दुई । उस्सग्गववायाणं मित्तीइ तहेव उवगरणं ॥ ३८॥ एएणवगरणणं पञ्चक्खाणस्स दवओ भंगो। इय कप्पणावि विहवाजुक्वणमिव णिप्फला णेया ॥ ३९॥ सिद्धन्तसिद्धधरणं उवगरणं तं मुणीण सुहकरणं । अह होइ पावहरणं इय अहं बिन्ति आयरिया ॥४०॥ पुच्छा दियंबराणं केवलमज्झप्पिआण उवहासो। अम्हाणं पुण इहयं दोण्हवि पडिआरवावारो ॥४१॥ पंचसमिओ तिगुत्तो सुविहियववहारकिरियपरिकम्मो। पावइ परमज्झप्पं साहू विजिइन्दियप्पसरो ॥४२॥ लुंपइ बझं किरियं जो खलु आहच्चभावकहणणं । सो हणइ बोहिबी उम्मग्गपरूवणं काउं॥४३॥ सवं सहावसझं णिच्छयओ परकयं च ववहारा । एगन्ते मिच्छत्तं उभयणयमयं पुण पमाणं ॥४४॥ अब्भन्तरवज्झाणं बलिआबलियत्तणं ति जइ बुद्धी । नणु कयरं अवलत्तं वेचित्तं वावि वेसम्मं ॥४५॥ मणिप्फत्ती व फलट्ठा अणिययजोगो फलेण वा सद्धिं । पढमे समसामग्गी बिइए वावारवेसम्मं ॥ ४६॥ तइए दोण्हवि समया चउत्थपक्खो पुणो असिद्धोत्ति । तेण समावेक्खाणं दोण्हवि समयत्ति वत्थुठिई ॥४७॥ णिच्छयओ सकयं चिय सवं णो परकयं हवे वत्थु । परिणामावंझत्ता ण य वंझं दाणहरणाई ॥४८॥ दिन्तो व हरन्तो वा ण य किञ्चि परस्स देइ अवहरइ । देइ सुहं परिणामं हरइ व तं अप्पणो चेव ॥४९॥ ण य धम्मो व सुहं वा परस्स देयं ण यावि हरणिज । कयणासाकयभोगप्पमुहा दोसा फुडा इहरा ॥५०॥ 0000000000000000000000 ॥१०८॥ Jain Education For Private & Personel Use Only view.jainelibrary.org
SR No.600058
Book TitleAdhyatmamatpariksha Swopagnyavruttyupeta
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1911
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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