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________________ श्रीमद्यशोविजयन्यायाचार्यप्रणीताध्यात्ममतपरीक्षा। 100000000000000000000 पणमिय पासजिणिदं वंदिय सिरिविजयदेवसूरिन्दं ॥ अज्झप्पमयपरिक्खं जहबोहमिमं करिस्सामि ॥१॥ अज्झप्पं णामाई चउविहं चउबिहा य तचन्ता । तत्थ इमे अत्युज्झिय णामेणज्झप्पिआ णेया ॥२॥ जा खलु सहावसिद्धा किरिआ अप्पाणमेव अहिगिच । भण्णइ परमज्झप्पं सा दंसणणाणचरणड्डा ॥३॥ ण विणा रागद्दोसे अज्झप्पस्सेह किंचि पडिकूलं । परदवं उवगरणं किं पुण देहुच धम्मटुं ॥४॥ उवधिसहिओ ण सुज्झइ सतुसा जह तन्दुला ण सुज्झन्ति । इय वयणं पक्खित्तं दूरे दिटुंतवेसम्मा ॥५॥ जा उवगरणे मुच्छा आरम्भो वा असञ्जमो तस्स । तह परदवंमि रई सा किण्ण तुहं सरीरेऽवि ॥६॥ तह परदवम्मि रई परिणामो रक्खणाणुबन्धो वा । दुहओ तणुसममुवहिं पासन्तो किंण लजेसि ॥७॥ जो किर जयणापुचो वावारो सो ण झाणपडिवक्खो। सो चेव होइ झाणं जुगवं मणवयणकायाणं ॥८॥ झाणं करणपयत्तो ण सहावो तण्ण जेण सिद्धस्स । इहरा ठाणविभागो कह सुक्कज्झाणभेआणं ॥९॥ जा खलु सरागचरिया सावि य उस्सग्गमग्गसंलग्गा । मोत्तुं अववायपदं अइप्पसङ्गी परविसेसो ॥१०॥ नणु बझंगं साहणमववाओ अन्तरङ्गमुस्सग्गो। जा पुण सरागचरिया समुच्चिआ णेव सुद्धाए ॥ ११ ॥ 0000000000000000000000000 Jain Education in For Private Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.600058
Book TitleAdhyatmamatpariksha Swopagnyavruttyupeta
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1911
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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