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भीमन्महामारणम् श्लोकानुगमको
से तत्र तेन मनसा (वन) २२४.३३ स तत्र संहारविसर्ग (शांति)२८०.४० स तथा प्रवदन्कोधा (वन) १३८.१७ स तत्र तोयं पिबति (अनु) १३०.२६ स तत्र समयं चक्रे भार्यया (आ) ४७.८ स तथा बाध्यमानो (आश्व) ६.३२ स तत्र नमसंयुक्तम (विरा) ३७.२३ स तत्र सिद्धानभिवाथ (वन) २४.२३ स तथा भिन्तसर्वाङ्गो (शल्य) १७.५४ म तत्र नागांस्तानस्तु (आ) ३.१३४ स तत्राकषयतिपः कथा (आ) १६५.७ स तथा यज्ञभागाहाँ (शांति) ३४०.६३ म निक्षिप्य मतं (वन) ११३.२१ स तत्राद्यापि रक्षाास (बा) १८१.२५ स तथा याचमानस्य मुनि (अन)६.२
स तत्र व्यवसद्विषो (शांति) १६८.५२ स तवेष्वस्त्रमकरोद् (शांति) २.१० स तथा रक्ष्यमाणो वै (आश्व)७४.२१ सतत्र बहभियंक्त (शांति) १२२.५ स तथा कुरु गाय(भीष्म) ५२.३० स तथा लक्षणो जातः (शांति)३३३.३५ स तत्र भगवान्देवः (शांति) २०७.१३ स तथा कुरु वाष्णय (हाण) .१२ स तथा शरवर्षाम्यां (द्रोण) १४७.५ स तत्र धातभिश्चय (वन) ६.२७ स तथा कुरुमणिश्व (दाण) ६४.१८ स तथा सत्कृतः सर्वे (आ) 20.. स तत्र योधितो राजन् (वन) १४.६ स तथा क्षिप्रकारी (कर्ण) ५६.१३० स तथा सत्कृते राज्ञा (वन) ७८.२६ सतब राजा तं वीर (आश्व) ७९.१६ स तथाक्षेषु कुशलो (वन) ५२.३२ स तथा समयं कृत्वा (आश्व) ५५.३३ स तत्र ववृधे मत्स्यः (वन) १८७.२३ स तथा तेष्वनीकेषु (द्रोण) ८.१५ स तयेति चिरेणोक्त्वा(शांति) २६६.६ स तत्र ववृधे राजन् (वन) १८७.१२ स तथा नगराध्यासे (वन) ६१.१० स तथेति प्रतिज्ञाय (आ) १४४.१५ स तत्र वारितो द्वास्थः (आ) ५४.२६ स तथा निर्गतान् (शांति) २६१.३६ स तथेति प्रतिज्ञाय गा (आ) ३.४६ स तत्र विधिना राजन् (शल्य)३६.३२ स तथा नोवितोऽस्माभिः (द्रोण) ७३.६ स तथेति प्रतिज्ञाय तया(वन) ९६.२३ स तत्र विधिवत्तेन (आश्व) ८१.३२ स तथान्तर्गतेनैव शूलेन (आ) १०५.७ स तथेति प्रतिज्ञाय तां (आ)२१५.२६ स तत्र विविधं हन्यं (बन) २२४.३० स तथा तज्यमानस्तु (शल्य) ३२.५ स तथेति प्रतिज्ञाय (वन) ११५.२६ स तत्र वृधे लोकाना (शल्य)४४.१० स तथा पाण्डपुत्रेण (द्रोण) १५५.२७ स तथेति प्रतिज्ञाय (वन) २६३.१६
६. स तत्र वीडितः शुष्को(शांति) ११४.६ स तपा पीडयमानो(भीष्म) ११३.३६ स तथेति प्रतिश्रत्य (अनु) ११८.८ सतत्र विवेश केदार (आ) ३.२४ सपा पूज्यमानस्ते (द्रोण) २०१.६१ सतयेति प्रतिव्रत्य (आश्य) ६.२७
स तथेति प्रतिवत्य (भाव) ५६.३० स तदासाद्य भूतं वै (सौप्तिक) ६.१६ स तथेति प्रतिश्रुत्य (आ) १४७.१६ स तद्गृहस्योपरि (उद्योग) १९२.३४ स तपेत्युक्त्वा गा बरक्षत् (आ) ३.४३ स तद्गृह्य धनुः श्रेष्ठ (द्रोण) =१.१७ स तथेत्युक्त्वा गुरुकुले (आ) ३.७६ स तद्दिव्यमदीनारमा(सौप्तिक)१३.१६ स तचत्युक्त्वा तमश्वम् (आ) १.१५७ सतहव्यं वन पश्यन्दिव्य (वन) ४३.७ स तयत्युक्त्वा वान्पुत्रा (आ) ६५.५५ सददष्टवा महदाश्य (आ)१९७.४३ स तथोक्तस्तयेत्युपत्वा(शांति)१४६.१३ स तद्वाणमयं वर्षमभ्म (द्रोण) १२७ ६५ स तथोक्तस्तदा (शाति) १२८.२५
स तद्विलं दण्डकाष्ठंन (आ) ३.१३१
. पतषाक्ता महाबाहुः (द्वाण)१९२.२९
स तद्रजा वचः श्रुत्वा (वन)२७७.२७ स तथ्यं मम तच्छुत्वा(वन) १६७.१३
स तव्राज्यमवस्थाप्य (मभा) २७.१० स तदन्नमुपादाय गतो (आ) १६४.१६
स तद्वाज्यापहरणं महत्त्य गं (वन)६२.६ स तदप्यस्य कौन्तेय (विरा) ५७.३०
स तद्रामाय मेधाव' (वन) २८२.३० स तदाज्ञाय दुष्टात्मा(सोप्तिक)१२.१०
स तदूपं भैरवं भीम (द्रोण) १७६.६१ स तदा तद्वचः श्रुत्वा (आश्व) ७४.८ स तद्वचः कृतवानुभ्य (वन) ११३.२२ स तदाऽत्मापराधे (उद्योग) ७२.३. स तद्वचः शी बहण, 11/१ ३.५३ स तदादाय मिथुनं राजा (आ) १३.१७ स तद्वाक्यमुपक्षम्य (41) १९२.३२ स तदाऽभ्ययं दैत्येन्द्र (शांति)२२२.३७ स तद्विक्षोभयामास (विरा) ५५.२२ स तदा मन्युनाविष्ट (वन) १३६६ स तद्विवानाशसंत्रासाव (मा) ३०.५ स तदा विविधान्मार्गा(द्रोण) १९१.३७ स तद्विवृत्य विवरं (आ) १६७.२० स तदासनमादाय (शांति) ३२६.३ सतग्न ममष द्रोणः (द्रोण) २६१८
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