SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 743
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थोन्महाभारतम् :: श्लोकानुकमणो स कदाचिद्वनं गत्वा (आ) १४.२ म कर्ण पञ्चवशत्या(द्रोण) १३१.५३ स काञ्चनविचित्रेण (द्रोण) १०.६ स किलाक्षातिवापस्त्वं (विरा) ७०.७ सकृत्पाशावकीणस्तेि (शांति) ८८. स कदाचिदनं राजा (आ) १७६.२ स कर्णमाकर्ण विष्ट (कर्ण) ६.९२ सकाण्डदण्डकाः सर्वे (उद्योग) १५५.७ स कीर्यमाणो (द्रोण) १७५.१०८ सकृत्पभिन्नश्च गति (अन) १४.५१ स कदाचिद्वनं विप्रो रुरु (आ) १.२१ स कर्ण कणिना कर्ण (द्रोण) ४८.१ सकाननाश्चाद्रिचयाश्च (कर्ण) ९४.५१ सकीलकवचाः सर्वे (उद्योग) १५५.८ सकता दारुणं कर्म (भीष्म)५४.१०२ स कदाचिन्निराहारो(शांति)२६१.१६ स कर्ण कणिना कर्ण (द्रोज) १३६.३ स काम इति मे बुद्धिः (वन) ३३.३८ स कुञ्जरस्थो विसृज (द्रोण) २६.५६ स कृत्वा दारुणां कर्म (भीम) ७४.७ स कदाचिन्नुपर्थष्ठो (आ) ८७.३ स कर्ण त्वं समुत्सृज्य (द्रोण) १७८.३ सकामकान्तो न त (शांति) २५१.१० स कुण्डलं तदजिन (आश्व) ५८.२४ स कृत्वा दुष्करं कर्म (द्रोण) ३३.२० स कवाचिम्मनु विप्रो (अनु) १८.५ स कर्ण दशभिविद्धा (द्रोण) १७०.४२ स कामः सर्वमताना (अन) १४८.२१ स कुण्डलं पूर्णशाशि (द्रोण) ११८.१५ स कृत्वा पाण्डवान (उद्योग) ६६.११ स कदाचिन्महातेजा (शांति) २६१.४ स कर्ण युधि निजित्य (सभा) ३०.२० सकामानां प्रभवो (द्रोण २०२.१२१ स कुण्डलं महच्चारु (द्रोण) १३६.४ स कृत्वा पितृकर्म त्वं (द्रोण) ८६.८ स कदाचिन्महाभाग (आ) १३.१२ सकणिकारप्रवरोहिण) ८.१२ कामो भव कौरव्य (आ) १४१.१५ सकुण्डल सकवर (जा) १६७.१५ स कृत्वाऽवश्यकार्याणि (मा) २१८.१५ स कदाचिन् महेष्वास(शांति) ३५२.६ स कर्ता कारणं चैव (शांति) ३४३.५६ सकामो भव दुर्बु (आ) १५१.३८ स कुण्डलं समुकुटं (भीष्म) ६०.७७ स कृत्वा सर्वकार्याणि (सभा) २.१२ स कदाचिन्महाराज (आ) ९७.२७ स कमें दुष्करं कृत्वा (द्रोण) ५२.२६ सकाम के महावेगं (कर्ण) ५०.४४ स कुण्डलं सिन्धु (द्रोण) १४६.११६ स कृत्वा सुमहत (भीष्म) ११८.३१ स कदाचिन्मृगं लिप्सु (कर्ण) ६६.१ स कर्म कुरु मा ग्लासी (वन) ३२९ स काल कंचिदाश्वस्य (सभा) १.१८ । निस स कुण्लशिरस्त्राणं (कर्ण) ५१.१३ सकृत् सतां सङ्गत (उद्योग) १०.२३ स कदाचिन्मगं विद्धा (आ) १००.२३ मालम्पियाति म काल: सोऽन्तको टोण) २०२.१०४ स कुण्डलाना पतता (हाण) सकदंशो निपतति (वन) २०४.२६ स कदाचिन्मृग विध्वा (आ) ४०.१३ सकलं चातुराश्रम्य (शांति) ५६.१० स काल्यमानो घोरेण (वन) १३६.१७ स कुरुष्व मया कार्य (आ) १५८३० सकृदुक्तं मया नाम (अनु) ६३.१०८ स कदाचिन्मृगयां गतः (आ) ३.१३ __स कलिङ्गानतिक्रम्य (आ) २१५.१२ सकाश्यपपोगप्तमाधम (आ) ७०.५० स कुलं तारयेत्सर्वे यस्य (अनु) ५८.१६ सकृदुत् मृज्य तन्नाद (आश्व) १०.६ स कम्पयन्निव महीं (वन) ७८.३ स कल्याणि वन (सौप्तिक) ११.१८ स काश्यपस्यायतनं महावत (आ)७०.५१ स कुलीनः से पुरुषः (अनु) ६२.४५ सकृदेवानतं शेक रथ (बिग) ५५२० स कम्पन्निव महीं (सभा) ३०.१६ स कल्याण मनः कवासोप्तिका ___स कल्याण मनः कृत्वा (सोप्तिक)५.१. स किंकिणीकजालेन (शल्य) १६४. सकूलमूलबान्धवं (शांति) ३२१.६७ स किकिमोकजालेन (शल्य) १६ सकुग्रहाः कुलत्थाश्च (भीष्म) ६६६ स करिष्यति ते काम (वन) १०८.२५ सकश्यपस्व वचनात (दोण) ७०.२२ सकिन्नरमहानागमुनि(वन) १६०.३८ स कच्छ परमं प्राप्तो(द्रोण) १०६.२६ सकृभिन्न त्वया व्यूह(द्रोण) ३५.२३ स करो भगदत्तेन (द्रोण) २६.४२ स कस्मिश्चित्क्षुधाविष्ट:(आश्व)५८.२० स कि पुरुषसंकीर्णः (आश्व) ८८.३७ स कृच्छामहमापन्नो (आ) १५७.४१ स कृष्णमलदिग्धाङ्ग (आ) १३२.३६ स कर्ण कणिना कर्णे (द्रोण) ४७.१० स का पजरेवदा(शांति) ८२.७ स कि शोचसि मूढः (शांति) २५.१८ सवृजातिगुणोपेतः (अनु) ११७.२८ स कृष्ण. सह रामेण (मौ) ८.. स कर्णचाप प्रभवान्नि (द्रोण) १३१.३६ स कांक्षन् भामसेन (द्रोण) १३३.२. स किरातश्च चीनश्च (सभा) २६.६ सकृत्कृतापराधस्य (शांति) १३९.२५ स कृष्यमाणो भीमेन (आ) १६३.२३ For Private Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600055
Book TitleMahabharatam
Original Sutra AuthorNagsharan Sinh
Author
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1992
Total Pages840
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy