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________________ जावज्जीवाए वि हु एसा बंभस्स य वज्जणा होई । एवं चिय जोयजुत्तो सावगधम्मो बहुप्पयारो ॥१०२॥ एवं विहो वि नवरं सच्चित्तं पि परिवज्जए सव्वं । सत्त य मासे नियमा फासुयभोयणग तप्पडिमा ॥१०३॥ सत्तमि सत्त उ मासे नवि आहरइ सन्चित्तमाहारं । जा जा हिट्टिल्ल किरिया नवरमुवरिमाण सा सव्वा ॥१०४॥ आरंभसयमकरणमट्टमिया अट्टमासं वज्जेइ । असिणाणो वि हु पूयापरायणो उसिणजलन्हाणो ॥१०५॥ जावज्जीवं सच्चित्तवज्जणा होइ जस्सावि । कयपूओ भुंजेमित्ति पइण्णो जस्स तरसेवं ॥१०६॥ नवमी नवमासं पुण पेसारंभ विवज्जए सव्वं । पुवकिरियासमेओ पूया कप्पूरवासेहिं ॥१०७॥ दसमी पुण दसमासं उद्दिकडंपि तत्थ न भुंजे । छुरमुंडो ससिहो वि हु सज्झायज्झाण पुव्वुत्तो ॥१०८॥ जनिहियमत्थजायं पुच्छतं सुयाण नवरि सो तत्थ । जइ जाणइ तो साहइ अह नवि तो बेइ न वियाणे ॥१०९॥ खुरमुंडो लोएण व रयहरणपडिग्गहं च गिण्हेत्ता । समणभूओ विहरइ मासा इक्कारमुक्कोसं ॥११०॥ नियकुलनिस्साए वा साहम्मियाण भिरकत्थमुवहिंडे । पडिमापडिवनस्स य दलाहि मे भिरकमिइवयणो ॥१११॥ मुविसहीओ बहिया वसही पुब्बुत्तज्झाणसंजुत्तो । गामंतरे बिहारं साहुव्व करिज्ज मपमाओ॥११२॥ ससहाओ जइ नईवि संतरिज्जा वि तहाविहे कज्जे । भावस्थयसंजुत्तो दधत्थयमित्थ नो कुज्जा ॥११३॥ आसेविऊण एया पडिवज्जइ सव्वविरइ महदेसे । गिहिभावं पडिवज्जइ कोवि पुणो जह तहा भावे ॥११४॥ अंतमुहुत्तप्पमाणा सव्वा पडिमा जहन्नओ हुंति । उक्किठ्ठा पुण एवं भणिया सिरिखीणरागेहि ॥११५॥ ॥ इति श्राद्धप्रतिमाधिकारः॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600053
Book TitleSambodh Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1916
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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