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संबोध ॥३६ ॥
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पढमं जईण दाऊण अप्पणा परमिऊण पारेइ । असइ सुविहियजणंमि भुंजेइ कयदिसालोओ ॥१४॥ संजईणदव्वलिंगीण - मंतर मेरुसरिसवसरिच्छं । नाऊण पत्तदाणे जयइ सो गुणजुओ सढ्ढो ॥ १५ ॥ मन्नइ जिणाण आणं मिच्छं परिहरइ धरइ सम्मत्तं । छव्विहआवस्सयंमी उज्जुत्तो होइ पइदिवसः ॥ १६ ॥ पव्वे पोसहवयं दाणं सीलं तवो य भावो य । सझायनमुक्कारो परोवयारो य जयणा य ॥ १७ ॥ जिणपूया जिणथुणणं गुरुधुइ साहम्मियाण वच्छल्लं । बवहारेण पवित्ती रहजत्ता तित्थजत्ताय ॥ १८ ॥ उवसम विवेगसंवर-भासासमिइछज्जीवकरुणा य । धम्मियजणसंसग्गो करणदमो चरणपरिणामो ॥ १९ ॥ संघोवरि बहुमाणो पुत्थयलिहणं पंभावणा तित्थे । जिणसासणंमि राओ णिच्च सुगुरूण विणयपरो ॥ २० ॥ इच्छइ नियहिययंमी परिग्गहं णवविहं परिचज्ज । गहिऊण संजमभरं करेमि संलिहणमणिदाणं ॥ २१ ॥ कप्परधूववत्थ-प्यभिइ दव्वेहिं पुत्थयाणं च । निम्माइ सया पूया पव्वदिणंमि विसेसाओ ॥ २२ ॥ दव्वसए संजाए गेहंमि जिणिदचिबसंठवणं । पवयणलिहणं सहस्से लरके जिणभवणकारवणं ॥ २३ ॥ द्विरणाई कि जिइ दससहस्सेहिं । इच्चाइधम्मकिञ्च सत्तीए कुणइ जो सढो ॥ २४ ॥ संवच्छरचाउम्मा- सिएस अठाहियासु तिहीसु । सव्वायरेण लग्गइ जिणवरपूयातवगुणे ॥ २५ ॥ अठमी चउदसी पुण्णि-मसी उद्दिठा तिहिचउक्कंमि । चारित्तस्साराहण-कएकरे पोसहाईयं ॥ २६ ॥ बीया पंचमि इक्कारसीतिहिनाण हेऊयाएया । तत्थय नाणाईणं पूया भत्तीइ कायव्वा ॥ २७॥ अण्णा दंसतिहिओ तत्प्रजिणिदाण भत्ती जुत्तीओ । विविहा विविहपयारा कायव्वा पइदिणं सम्मं ॥ २८ ॥
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प्रक०
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