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संबोध
प्रकरणम
आवस्सयसझाए पडिलेहणझाणभिरकभत्तो । आगमणे निग्गमणे ठाणे निसीयणे तयट्रे॥१३॥ आवस्सयाई न करइ अहवा य करेइ हीणमहियाई । गुरुवयणबला वि य तहा भणिओ एसो य उस्सन्नो ॥१४॥ कालविणयाइरहिओ नाणकुसीले य सणो इणमो। निस्संकियाइरहिओ चरणकुसीलो इमो तिविहो ॥१५॥ कोउयभूईकम्मे पसिमापसिणे निमित्तमाजीवी । कक्ककरुयाइलरकण-मुवनीवइ विज्जमंताई ॥१६॥ पासत्थाईएसु संवि-ग्गेसुं च इत्थ मिलिओ वि । न हि तारिसओ होइ पियधम्मो अहव इयरो य ॥१७॥ सो संसत्तो दुविहो देसे सब्वे य इत्थ नायब्बो। अहच्छंदो वि पंचम अणेगविहो होइ नायवो ॥१८॥ उस्सुत्तमणुवइट्ठ सच्छंदविगप्पियं अणणुवाइ । परतत्ति पवत्तेत्ति तेण य इणमो अहाछंदो ॥१९॥ पासत्थाइवंदमाणस्स नेव कित्ती न निज्जरा होइ । जायइ कायकिलेसो बंधो कम्मस्स आणाए ॥२०॥ जह लोहसिला अप्पं पि बोलए तह विलम्गपुरिसंपि । इय सारंभो य गुरू परमप्पाणं च बोलेइ ॥२१॥ जह असुइठाणपडिया चंपकमाला न कीरते सीसे । पासत्थाइठ्ठाणे वट्टमाणा इह अपुज्जा ॥२२॥ पक्कणकुले वसंतो सओणीपारो वि गरहिओ सीसो । इह गरहिया सुविहिया मझि वसंता कुसीलाणं ॥२३॥ परिधारपूयहेऊ पासत्थाणं च आणुवित्तीए । जो न कहइ सुद्धचम्म तं दुल्लहबोहियं जाण ॥२४॥ जइ अप्पणा विसुद्धो कुसीलसंगं च पकवायं वा । न चयइ पूयाहेऊं तं दुल्लहबोहियं जाण ॥२५॥ केइ भणति उ भण्णइ सुहुमवियारो न सावगाण पुरो। तं न जओ अंगाइसु सुच्चइ तव्वन्नणा एवं ॥२६॥ लठ्ठा गहियठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियठ्ठा य । अहिगयजीवाजीवा अचालणिज्जा पवयणाओ॥२७॥
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