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विगलपणिदियदव्वाण संभवं कप्पए नु भत्तीए। पढमं बीयं वत्थं नो कप्पइ भत्ति (माइ) कज्जेसुत्ति ॥१३५॥(पाठान्तरम् )। सुयभावेज सिठं तं सव्वं किज्जए सुभत्तीए। कच्छुरिकाइगंध-दव्वं नेयं न मिगजायं ॥ ज लोमहत्थयाइ वुत्तं तं देवनिम्मियं तत्थ । इत्थ वि तयभावाओ ज कीरइ भत्तिसम्भावा ॥ जं वालवीजणाइ सव्वं रययप्पयारमासज्ज । संपइ तयभावाओ लोममयं किज्जइ विसिठं॥ णो थीपुरिसविवज्जास-वत्थं कुज्जा न थिबुगपरिमाणं । दंसणायारविसोहिए कायव्यो मुहपुडोठ्ठपुडो॥१३६॥ निम्मल्लविहिनिम्मिय-भूपीठमणज्जसंगमावज्जं । निस्संकियाइदोसेहिं रहियं खेत्तं पवित्तं च ॥१३७॥ अकुसलमणप्पवित्ती-वावारविवज्जणं खु मणसुद्धी । दूरीकयमिच्छत्त-लवाइदोसेहिं सा होई ॥१३८॥ पयड़ियगुणगेणो-चियवित्तिपसत्यचित्तसम्भावा । खेयाइदोसरहिया तदझवसिया य मणसुद्धी ॥१३९॥ गिहवावारविवज्जण-सन्नाईहिं वि पसत्यवयणगुणा । जिणगुणकीत्तणरूवा पूयावसरे हु वयसुद्धी ॥१४०॥ आसायणपरिहार-प्पयासपयडियपसत्थभत्तिभरा । हासाइमलिणवज्जण-लोयविरुद्धाइसव्वं ज॥१४१॥ विहिकयन्हाणुव्वहण-गत्तो लित्तो सुगंधमाईहिं । कयतिलओ वेगच्छिं आणाववहारपणरूवं ॥१४२॥ कंठहियउयरदेसंमि कयतिलओ अप्पणाअसंकप्पो । जिणगुणधुणणं सद्दहण-मणुवमसुहतित्तिसंकरणं ॥१४३॥ पुव्वासाभिमुहमुहो विहिकयन्हाणो अर्णिदियविसयगणो । उवसामियअप्पसत्य-जोयरयभावसन्हाणो ॥१४४॥ सिठ्ठीए समगपयं-गुठगयं जाणुहत्यअंसाणं । सिरमालकंठवच्छ-स्थलउयरंमि जिणिदाणं ॥१४५॥ कयचित्तो दढचित्तो अणुत्तरझाणभत्तिसंजुत्तो । पच्छाविविहपयारा पूया निम्माइ निम्ममओ ॥१४६॥
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