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________________ संबोध 119811 Jain Education International आलोयणातहीओ नंदा भद्दा जिया य पुण्णा थ । रविससिबुहगुरुमुक्का वारा करणाणि विठिविणा ॥ ५ ॥ सूरे घणुमीणगए गुरुहॅरिविठ्ठे य गंडविइवाए । अण्णे वि असुहजोगा सोहिपयाणे परिचाया ॥ ६ ॥ वसहि पवेयइत्ता वासावासं तहा विवज्जित्ता । कयसम्मत्तविसुद्धी जिणगुरुठवणारियाण पुरो ॥७॥ आलोयणाणिमितं गीयत्थगवेसणा य उक्कोसा । जोयणसयाईं सत्त उ बारस वासाई कायव्वा ॥ ८ ॥ itect संविग्गो अपरवाओ अवज्जभीरू य । मूलत्तरगुणसुद्धो मुणियपवयणरहस्सो य ॥९॥ जुग्गाजुग्गगवेसण “बालतरुणाइवुगुसामत्थो । जो कुसलो 'सव्वत्थे आलोयणदायगो स मुणी ॥१०॥ तह भावे संविग्गो गीयत्थो जो अवज्जसनगुप्पो । संभोगी असंभोगी तयभावे होइ सारूवी ॥ ११ ॥ तयभावे पच्छाकड-ससिहो वा सिद्धपुत्तयसदारो । सामाइय दाऊणं तप्पुरओराहणा कुज्जा ॥ १२ ॥ तयभावे विहु जत्थ य जरकाययणं पुराणमिज्जजणं । जिणगणहरसाइसया - रियाई पुष्षं ठियावासं ॥ १३॥ पुव्युत्तरदिसिसमुह विदिसं उत्तरपुरत्थिमाभिमुहो । पागडियसव्वसल्लो पुरठ्ठओ भइ विणयपरो ॥ १४॥ पुति पमज्जिऊणं काऊ किइकम्मचेइवंदणयं । वासठ्ठावणपुवि अइयारा सव्वभणियव्वा ॥ १५ ॥ आलोयणापरिगओ पावं फेडेइ सयलभवजणियं । जइ निस्सल्लगुणेहि ससल्लओ तं समज्जेइ ॥ १६ ॥ पायइ सोयइ पुण्णं पासइ गुडेइ जीववत्थं वा । पावसद्दस्स अत्यो णिज्जुत्ती एहि विणेओ ॥१७॥ लोयालोयस्स मज्जाया अतिलोयत्तिलोयणं तस्स । आसणित्ति संपाडण - मालोयणसद्दणिज्जुत्ती ॥१८॥ तम्हा अगीओ न वि जाणइ सोही चरणस्स देइ ऊणहियं । तो अप्पाणं आलो-यगं च पाडेइ संसारे ॥ १९ ॥ For Private & Personal Use Only प्रक० ॥५४॥ www.jainelibrary.org
SR No.600053
Book TitleSambodh Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1916
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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