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ततः कुङ्कणकदलीफल-कोहलापाक-खा(पा)रिक-ख(ष)जूर-खा(षां)ड-गुंदवडा-घेवर-चारवी-चारोली-जलेबी-हा 18|टोपरां-दाडिम-द्राख(प)-नीलीद्राख(प)-फणस-फीणी-साटा-वरसोला-निमजां-पिसतां - सिता-अखो(पो)ड-बदा-81
म-सेलडी-शृंगाटिक-प्रमुखफलावली परिवेषिता । ततः खा(पा)जां-मुंहाली-तिलसांकली-ख(ष)सख(ष)स-सांकुची18|मांडी-मुरकी-सेवइआलाडू-दलीआलाडू-झगरीयालाडू-मोतीआलाडू-चारोलीलाडू-वाजणालाडू-प्रमुखानां पक्षा-18! हान्नानि परिवेषितानि । कासाचन स्त्रीणां पीसी लापसी, खा(षां)ड सरसी, स्त्री जिमें हसी, जीभे जाइ खि(पि)सी 18 8कासांचित् पापडी, किस्युं निमें जीभ बापडी । तदनु दुबलीइं खा(पां)ड्यो सबलीए छड्यो, हलुआ हाथवालीए | सोह्यो, फूटरी स्त्रीए धोयो, चतुरस्त्रीनो रांध्यो, सरहरो, परहरो, मुंहालो, अणीआलो, दूवले पेटे जाणे के है। फोडी नीसरसे, जे जिमसे तेहने घरनुं जिमण नही विसरस्य। एवंविध रायभोगशालिसत्काः कूराः परिवेषिताः।।8। ततो मूंगदाली वाने पीली, नेत्रे सीली परिवेषिता । ततः सद्यस्तावितं साक्षादमृतं घृतं परिवेषितम्, ततो वडा ।। धणे घोलें भीनां, मरीयाली खां(पां)डमी पापड तल्या, मुहभणी हाथवल्या, दरिद्री ते जिमणनें टलवल्यां, राइता, चिणा, डोडो, टींडोरां, सालणे भाणां भरियां तुरियां ते करिआं तीखां षां)-कडूआ-कसायलां-मधुराचतुः प्रकारेण-8| 18/दुर्जनना होआ सरिखा(पां तीखा(षां, पाडोसिणीनी जीभ जिस्यां कडूआं, श्रीगुरुना वचन सरिखा(षा) कसा-18
18/यला, मायना स्नेह सरिखा(पा), मधुरा एवंविधानि शाकानि परिवेषितानि । ततः प्रीस्यां घोलगल्यां, बोले | उपस० ११ 8
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