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प्रतिष्ठा
पाठ
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POLICARRIERROR
अंबाः सर्वाः सवित्र्यस्त्रिजगदधिपतिप्राप्तपूजाधिकारा
___ अत्रागत्याध्वरोया यजनकृतमिह स्वादरेण वृणंतु । अवयूपत्निका वा धृततनुकुलयोर्दोषहीनां प्रकल्प्य
वादित्रोद्घोषपूर्व विहितयमदमां भूषयेत्पुण्यमूर्तिम् ॥ ७१८ ॥ कदाचिदेषा न भवेद्गुणाढ्या मंजूषिकां कल्पतु मातृकार्ये ।
एवं चतुर्विशतिजिनप्रसूनां नामानि पुण्यानि कृती वहेत ।। ७१६ ॥ तीन जगतके स्वामी इंद्र धरणे द्रादिकरि प्राप्त है पूजाको अधिकार जिनि असो सर्व जननी अंबा जे हैं ते इहां यज्ञ भूमिमै आयकरि यज्ञका कृत्यने आदरकरि ग्रहण करो। काष्ठको मंजूषाने ही माताका कार्यमें कल्पना करो। ऐसें चौईस जिनराजकी माताका नाय पुण्यवान् यजमान स्थापन करै तथा स्मरण करे ॥ ७१८-७१६॥
____ओं ह्रीं मरुदेव्यादिजिनेद्रमातरोऽत्र सुप्रतिष्ठिता भवंतु स्वाहा। ओं ह्रीं मरुदेवो आदि जिनेंद्रमाता इहां तिष्ठो, अर्घ देणा। ऐसें भद्रपोठ कहिये वंदना काष्ठकृत पोढामें मातृमंडल प्रति पुष्पांजलि देनी।
इत्युक्त्वा .... .... .... .... ....।
PROSCORRECASSROOMICS
SHISHTECRETS
..... .... .... .... .... ॥ ७२०॥ छत्र रत्न दर्पण ध्वजा वस्त्र मंगलीक आभूषणनिका ग्रहण करि भूषित शुचिविधानसंयुक्त स्नान करावै अरु चंदनको चर्चन अरू पाला आदिनि करि पूजे ॥ ७२० ॥
असे पढ़ि माताके अग्र छत्र चापर भूषण आदि स्थापन करै।। अब दिक्क मारिका जो माताकी सेवामें इंद्रकरि नियोजित कीजिये है ताको कल्पन है
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