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________________ थतिष्ठा POSSARREARR अथ पंचकल्याणकारोपमनुक्रमिष्यामः। अथ पंच कल्याणनिका आरोपनै अनुक्रमकरि कहै हैं कल्याणपंचकमनुकमतः सुरेंद्राः कृत्वा स्वजन्मवहनं सफलं गणतः । तत्पंचकावतरणे विधृतिक्रियार्था धन्या भवाम इति तान्यनुभावयामः ॥१४॥ सुरेंद्र हैं ते अपना जन्मनै सफल मानते जिनेंद्रका पंचकल्याण अनुक्रमतं करि पर तिसपंचल्याणका तरखने जो जो क्रिया अथ Pा धारण करें पर धन्य मान है तिनिनै हम भी अनुभवन करें हैं॥७१४॥ इत्युक्त्वा पुष्पांजलिक्षेपः। असे पढ़ि पुष्पांजलि क्षेपण करना। मंत्र। यो अरहताणं णमो-सिद्धाणं णमो पाइरियाणं णमो उवउमायाणं णमों लोए सबसाहणं। ओं जय जय जय नमोऽस्तु नमोऽस्तु || नंद नंद नंद अनुसाधि अनुसाधि पुनीहि पुनोहि पुनोहि मांगल्यं मांगल्यं मागल्यं शांतिरस्तु । मंगलं जिननामानि मंगलं मुनिसेवनं । मंगलं श्रुतमध्येयं मंगलं विंबनिर्मितिः ॥७१५॥ . जिनेंद्रके जितने नाम हैं, ते सर्व मंगल हैं, अर वीतराग मुनिनिको सेवन है सों मंगल है अर अध्ययनयोग्य) श्रत कहिये अमाप्तवाक्य ते || मंगल हैं अर भगवानका विंबकी प्रतिष्ठा है सो मंगलरूप है ॥७१५॥ FEREGASHASAR ASWATER IORRIGAMADROO For Private & Personal Use Only R elibrary.org Jan Educati o nal SI . . .
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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