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________________ अरु जे नासिका इंद्रियकी उत्कृष्ट गति है ताकू भी छोड़ि अधिक स्थानमें गंधका ग्रहणकी शक्तियुक्त जे हैं तिनने अरु उत्कृष्ट मंधका AII अनुभागका प्रकाशमें अरू निश्चयरूप असे मुनींद्रनिन मैं पूजू हूँ॥६६७॥ ओं ह्रीं दूरघाणविषयग्राहकशक्तिऋद्धिप्राप्त भ्योऽधम् । निर्णीतपूर्णनयनोत्थहृषीकवार्ता चक्रेश्वरस्य नियता तदधिक्यभावात् । दूरावलोकनजशक्तियुतान् यजामि देवेंद्रचक्रधरणींद्रसमर्चितांहिं ॥ ६६८॥ अरु जो निर्णय किया परिपूर्ण नेत्र इंद्रियका विषयकी वार्ता चक्रवर्तीके नियत है अरु तासे अधिक भावतें दर देखनेकी शक्तिसंयुक्त अरू देवेंद्र चंद्र धरणीधरनितें पूजित चरण जिनके असे मुनींद्रने मैं पूजू हूँ॥६६॥ ओं ह्रीं दुरावलोकनशक्तिऋद्धिप्राप्त भ्योऽयम् । श्रोसेंद्रियस्य नवयोजनशक्तिरिष्टा नातः परं तदधिकावनिसंस्थशब्दान् । श्रोतुं प्रशक्तिरुदयत्यतिशायिनी च येषां तु पादजलजाश्रयणं करोमि ॥ ६६६ ॥ अरु कर्ण इंद्रियकी उत्कृष्ट नवयोजन प्रमाण शक्ति इष्ट है अरु अधिक पृथ्वीमें रहते शब्दनिनै सुणवेकी अतिशय शक्ति जिनके उदयमें होय तिन साधुनिका पद कमलका आश्रय करू हूँ॥६६॥ ____ओं ही दूरश्रवणशक्तिऋद्धिमाप्तेभ्योऽर्थे। अभ्यासयोगविहृतावपि यन्मुहूर्तमालेण पाठयति दिग्प्रमपूर्वसाथ। शब्देन चार्थपरिभावनया श्रुतं तच्छक्तिप्रभूनधियजामि मखस्य सिद्धथै ॥ ६७०॥ अरु जे अभ्यासकिये बिना ही मुहूत्त मात्रकरि दश पूर्वनै पढे हैं शब्द अरु अर्थको भावनाकरिता श्रुतकी शक्तिसंयुक्त प्रभूनिने यानी र ४ सिद्धि अर्थि पूजू हूँ॥६७०॥ प्रों ही दशपूर्वित्वऋद्धिमाप्त भ्योऽय। २८ ALSAॐ ॐॐ KICHOREOGA Jain Educati o nal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org I
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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