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________________ 1 प्रतिष्ठा 288 - 4-%AGARMANCECam-%AE विद्यानुवादभुवि चंद्रसुकोटिकाष्ठालक्षाः पदा यदधिमंत्रविधिप्रकारः । संरोहिणीप्रभृतिदीर्घविदां प्रसंगस्तं पूजये गुरुमुखांबुजकोशजातं ।। ६२३ ॥ अरु विद्यानुवाद रूप भूमीमैं एक कोटि दशलक्ष पद हैं अह जामै सर्वमंत्रनिका प्रकार है अरु रोहिणी आदि महाविद्यानका सिद्धि होनेका प्रसंग है ऐसा गुरुमुखकमलकर्णिकासे है उत्पत्ति जाकी ताकू मैं पूजू हूँ॥६२३ ॥ ओं ह्रीं विद्यानुवादपूर्वायाघम् । कल्याणवादमननश्रुतमंगमुख्यं षड्विंशतिप्रमितकोटिपदं समर्चे । यत्रास्ति तीर्थकरकामबलविखंडिजन्मोत्सवाप्तिविधिरुत्तमभावना च ॥ ६२४ ॥ अरु कल्याणवादका मननरूप श्रुत है सो अंगनिमें मुख्य है अरु छ्व्वीस कोटिपदयुक्त अरु जहां तीर्थंकर कामदेव बलदेव नारायणनिका जन्म उत्सव आदि उपजनेका वृत्त तप विधान अरु भावना-वर्णन है ताकू मैं पूजू हूँ॥६२४॥ _ओं ह्रीं कल्याणवादपूर्वायाघम् । प्राणप्रवादमभिवादयतां नराणां विश्वप्रमाणमितकोटिपदाभियुक्तं । काऽऽर्तिभवेन्निरयघोरभवस्य चायुर्वेदादिसुस्वरभृतं परिपूजयामि ।। ६२५ ॥ आयुर्वेद ज्यों वैद्यक तथा स्वरनिका वाम दक्षिण वाहनमैं शुभाशुभका कथनयुक्त अरु चौदह कोटिपद वारो ऐसो प्राणवाद अंगन । पूजन करते मनुष्यनिके नरकादि घोर दुःखनिकी कहा पीडा होय ? यातें मैं पूजू हूं ॥६२५॥ ओं हो प्राणप्रवादपूर्वायाम् । क्रियाविशालं नवकोटिपधैर्युक्तं सुसंगीतकलाविशिष्टं । छंदोगणाद्याननुभावयतमध्यापकानन विधौ यजामि ॥ ३२६ ॥ COMPECHAUTOCA4%%%% AROO %3 Jain Education For Private & Personal Use Only S helibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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