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प्रतिष्ठा
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प्राप्ताशेषगुणास्तदीप्सितपदावाप्त्यै तु संतु श्रिये ॥५४॥ ये भावी समयमै तीर्थंकर गोत्रका धरिवात पूर्व भागममै विख्यात हैं, अरु निजामका संतानने दूरकरि प्रगट भई है शक्ति जिनकी | ऐसे ते इहां विवका शुचियज्ञमें भक्तिकरि पजित भया अरु प्राप्त भया है समग्र गुण जिनकै ऐसा जिनेंद्र अपना पद ह देवा वस्तै मोत लक्ष्मीकी प्राप्ति अर्थ होऊ॥५४॥
ओं ही विवातिष्ठोद्यापने मुख्यपूजार्हचतुर्थवजयोन्मुद्रितानागतचतुवेशतिमहापद्माद्यनंतवीर्या तेभ्यो जिनेभ्यः पूर्णाघम् ।। ओं ह्रीं विवप्रतिष्ठा उत्सवमें मुख्य पूजा योग्य अरु चतुथै बलयमें स्थापित अनागत चौबीस जिनेंद्र अघ-देना ॥
अथ पंचमवलयस्थापितविदेहजिनपूजा। अब पंचम बलयकी पूजा कहैं हैं
सीमंधरं मोक्षमहीनगर्याः श्रीहंसचित्तोदयभानुमंत।
यत्पुंडरीकाख्यपुरस्वजात्या पूतीकृतं तं महसार्चयामि ॥ ५५५॥ पोक्षपृथ्वीरूप नगरीका सोपाने धरणेवारो श्रीपन हंसनाम राजाका चित्तम उदयाचन तामैं सूर्यसपान अरु जो अमान मह जो अपना जन्मत पुंडरीक पुरन पवित्र करनेवारो ऐसा श्रीमंधर जिनेंद्रने पूजू हूँ॥५४५॥
ओं ह्रीं सीमंधरजिनायाघम् । युग्मंधरं धर्मनयप्रमाणवस्तुव्यवस्थादिषु युग्मवृत्तेः ।
संधारणात् श्रीरुहभूपजातं प्रणम्य पुष्पांजलिनार्चयामि ॥ ५५६ ॥ धर्म अरु नय अरु प्रमाण आदि वस्तुको व्यास्थादिमें युग्मताको प्रत्ति है, अर्थात् धर्म मुनि श्रावक भेदत, नय द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक भेदते, प्रमाण प्रसत परोक्ष भेदत, वस्तु व्यवस्था स्वपर निपित्त भेदत, दोय दोय रूप वृत्तिका संधारणत युग्मंधर हुमा अरु श्रीरुद्द नाम राजात उत्पन्न हुवा ताकूनमस्कार करि पुष्पांजलि करि पूजू हूँ॥५४६ ॥
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