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________________ काव्यम् श्रीपालमयणामृत 靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈跟靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈 'जिणुत्ततत्तेरुइलक्खणस्स नमो नमो निम्मलदसणस्स । अन्नाणसम्मोहतमोहरस्स नमो नमो नाणदिवायरस्स ॥१०२४॥ आराहिआऽखंडिअसक्कियस्स नमो नमो संजमवीरिअस्स । कम्महुमुम्मूलणकुंजरस्स नमो नमो तिव्वतवोभरस्सं ॥१०२५॥ • इय नवपदसिद्ध लद्धिविज्जासमिद्धं, पयडिअ सरवग्गं ही तिरेहासमग्गं । दिसिवइ-सुर-सारं खोणिपीढावयारं, तिजयविजयचक्कं सिद्धचक्कं नमामि ॥१०२६॥ • इत्थं संस्तूय सद्भावैः समुल्लासैः पदान् नव । निर्वेदादि-निजेच्छां सः प्रार्थनया न्यवेदयत् ॥१०२७॥ 靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈靈器靈器 | १. जिनोक्त-तत्त्वे रुचिलक्षणाय नमो नमो निर्मलदर्शनाय । अज्ञानसंमोह-तमो हराय नमो नमो ज्ञानदिवाकराय ॥१०२४॥ २. आराधिताऽखण्डित सक्रियाय नमो नमः संयम-वीर्याय । कर्मद्रुमोन्मूलनकुञ्जराय नमो नमस्तीव्रतपोभराय ॥१०२५॥ ३. इति नवपद-सिद्ध लब्धि-विद्या-समृद्धं, प्रगटित-स्वरवर्ग ही त्रिरेखा-समग्रम् । दिक्पाल-सुर-सारं क्षोणिपीठावतारम्, त्रि-जगद्-विजयचक्र सिद्धचक्रं नमामि ॥१०२६॥ Jain Education into 1 2010-05 For Private & Personal use only 4 w .jainelibrary.org
SR No.600038
Book TitleShripalmaynamrut Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagar
PublisherAgamoddharak Pratishthan
Publication Year
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
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