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________________ LO卐00 - ध्वज को प्राप्त करो। अज्ञान रुपी अंधकार बिना का उत्तम केवलज्ञान, केवलदर्शन प्राप्त करो। जिनेश्वर देवों द्वारा उपदेशित सरल मार्ग का अनुसरण कर के आप परम पद-मोक्ष को प्राप्त करो। परिषहों की सेना का नाश कर हे उत्तम क्षत्रिय! क्षत्रिय नर पुंगव आप जय पाओ! बहुत दिनों तक, बहुत पक्षों तक, बहुत महीनों तक, बहुत ऋतुओं तक, बहुत ★ अयनों तक, बहुत वर्षों तक परिषहों और उपसगों से निर्भय बनकर, बहुत भयकारी भयभीत करने वाले प्रसंगो में क्षमाप्रधान होकर आप विचरण करे। आपके धर्म में याने आपकी साधना में विघ्न न हो,“ ऐसा कहकर लोग भगवान महावीर को जयनादों से गुंजाते है। ११३) उसके बाद श्रमण भगवान महावीर क्षत्रियकुण्ड ग्राम नगर के बिच में से होकर जहां ज्ञातखण्ड नाम का उद्यान है और जहां अशोकवृक्ष है वहां आते है। श्रमण भगवान महावीर महोत्सव को देखने हेतु श्रेणीबद्ध बैठे हुए मानवों की 卐 हजारों नेत्र पंक्तियों से बारंबार देखे जाते हुए, हजारों मुखपंक्तियों से अथवा वचनों की पंक्तियों से बार-बार स्तुति किये जाते हुए, हजारों हृदय पंक्तिओं से “आप जय पाओ' इत्यादि शुभ चिन्तवन के बारंबार प्रबलता से समृद्धि प्राप्त कराते हुए, हजारों मनोरथों की पंक्तियों से बार-बार विशेष प्रकार से स्पर्श कराते हुए, अर्थात "हम प्रभुके आज्ञांकित Foreverespemonituseonly
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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