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________________ 0500050005000 उसुख और दुखों का निःशेषतया अन्त करने वाला होगा। ऐसा कहकर वे देव 'जय जय ऐसी ऊंची आवाज से गगन व पृथ्वी तल को गूंजित करते है | १११) श्रमण भगवान महावीर को पहले भी याने मनुष्य संबंधी गृहस्थ धर्म में आने पर विवाहित जीवन से पूर्व ही, उत्तम, अभोगिक याने नाश न हो ऐसा ज्ञान दर्शन था। इससे श्रमण भगवान महावीर उस अपने उत्तम ज्ञान दर्शन से अपना निष्कमण काल याने प्रवज्या समय आ गया है ऐसा देखते है, जानते है, इस प्रकार से देखकर चांदी को, सोने को, धन को, राज्य 0 को, देश को, सेना को, वाहनों को, कोशागारों कोठारों को, पुर को, अन्तःपुर को, जनपद को, बहुत सारे धन को, सोना, रत्न, मणि, मोती,शंख राजाओं से प्राप्त खीताब को, प्रवाल और माणिक प्रमुख लाल रत्नादि द्रव्यों को छोड़कर, अपने द्वारा नियुक्त दाताओं द्वारा उचित दान देते हुए याने जिनको देना उपयुक्त है ऐसा घ्यान रखते हुए, अपने गोत्रीय जनों को धन, धान्य, चांदी, सोना, रत्न मणि विगेरे बांटकर, हेमन ऋतु का प्रथम मास, प्रथम पक्ष याने मृगशिर कृष्ण पक्ष आते ही याने मृगशिर कृष्ण दशम का दिन आने पर जब छांया पूर्व दिशा की ओर झुक रही थी याने न ज्यादा व न कम, प्रमाणोपेत थी पौरुषी होने आई थी ऐसे समय में सुव्रतनामक दिन, विजय नामका मुहर्त के आने पर पूज्य भगवान चन्द्रप्रभा नाम की पालखी 0000000000
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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