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।। श्री महावीर स्वामिने नमः ।।
।। श्री सर्वज्ञो को नमस्कार ।।
|| श्री गौतमस्वामिने नमः ।।
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अरिहंतो को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार, लोक में रहे हुए सभी साधुओं को नमस्कार, ये पांच नमस्कार सर्व पापों को नाश करने वाले हैं और सब मंगलों में * उत्कृष्ट मंगलरुप है ।। १ ।।
(१) उस काल-उस समय में श्रमण भगवान महावीर के जीवन के प्रसंगो में पांच बार हस्तोत्तरा नक्षत्र आया था (हस्तोत्तरा यांने उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र)। वो इस प्रकार (१) हस्तोत्तरा नक्षत्र में भगवान का च्यवन (माता के गर्भ में आगमन) हुआ, (२) हस्तोत्तरा नक्षत्र में आकर एक गर्भस्थान में से दूसरे गर्भस्थान में रखने में आया, (३) हस्तोत्तरा नक्षत्र में भगवान का जन्म हुआ, (४) हस्तोत्तरा नक्षत्र में भगवान ने घर से निकल मुंड बनकर, अनगारत्व याने मुनि प्रवज्या (दिक्षा) ग्रहण की, (५) हस्तोत्तरा नक्षत्र में भगवान को अनंत, उत्तमोत्तम, व्याघात- प्रतिबंध बिना का, आवरणरहित, समग्न और परिपूर्ण ऐसा केवलज्ञान और केवलदर्शन उत्पन्न हुआ, (६) स्वाति नक्षत्र में भगवान परिनिर्वाण पाये।
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