SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 000000 - 11: क्षीरसमुद्र, 12: देवविमान, 13: रत्नो का ढेर, 14: निधूम अग्नि। अब हे देवानुप्रियो! इन उदार चौदह महास्वप्नों का फल मै जहां तक सोचता हुं बहुत ही अच्छा होगा। ७०) तत्पश्चात् स्वप्न लक्षण पाठकों ने सिद्धार्थ क्षत्रिय से इस प्रकार की बात सुनकर, समझकर प्रसन्न हुए, उनका हृदय प्रफुल्लित बना। उन्होंने इन स्वप्नों को साधारण तया समझा, फिर उनके विषय में उन्होंने विशेष मनन किया। फिर परस्पर विचारणा की, एक दूसरे ने शंकाओं का निवारण किया, तत्पश्चात् अर्थ निश्चित किया और सर्वानुमत से एक होकर पूर्ण निश्चित बने। फिर वे सिद्धार्थ राजा को शास्त्र प्रमाण वचनों से इस प्रकार कहने लगे: ७१) "हे देवानुप्रिय! वास्तव में ऐसा है कि हमारे स्वप्न शास्त्र में बीयालीस प्रकार के स्वप्न कहे गये है, बडे स्वप्न बताये गये है। इस प्रकार कुल मिलाकर बहत्तर स्वप्न होते है। उसमें हे देवानुप्रिय! अरिहंत की माताएं और चकवती की माताएं अरिहंत और चकवर्ति गर्भ में आने पर तीस बड़े स्वपन में से ये चौदह स्वपन देखकर जगती है। प्रथम हार्थी वृषभादि। ७२) “वासुदेव गर्भ में आने पर वसुदेव की माताएं इन चौदह महास्वप्नों में से कोई सात महास्वप्न देखकर जगती है।
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy