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________________ है। प्रवेश करने के बाद गूंथे हुए मोतियों से युक्त जो जालियां, उनसे व्याप्त व मनोहर है तथा उसका भूमितल याने फर्श पर तरह-तरह के मोती और रत्न जड़े हुए है, ऐसे रमणीय मण्डप जो विविध जाती के मणि और रत्नों से अद्भूत स्नानपीठ पर सुख पूर्वक बैठे हुए सिद्धार्थ क्षत्रिय को फुलों के रस से भरे हुए यानी अत्तर डाले हुए पानी से, चंदनादि *डालकर सुगन्धित किये हए पानी से, गर्मपानी से, पवित्र तीथीं से लाये हुए पानी से तथा स्वच्छ पानी से कल्याणकारी, उत्तम तरीके की स्नान विधि अनुसार स्नान कराने में कुशल पुरुषों ने नहलाये। न्हाते समय कई प्रकार के रक्षादिके उनके शरीर पर करने में आये। इस प्रकार से कल्याणकारी उत्तम प्रकार की स्नानविधि पूरी होने पर, रुंवार्टीवाले अतिकोमल स्पर्श वाले और सुगन्धित लाल रंग टोवेल शरीर को वस्त्र से शरीर को पोंछड़ाला। यानी जलरहित किया। उसके बाद उन्होंने अखण्ड-फटे टूटे बिना का अति महामूल्यवान वस्त्र पहने। फिर शरीर पर सुगन्धित गोशीर्ष चंदन का विलेपन किया, पवित्र सुगन्धित मालाएं धारण की, तथा केशर मिश्रित सुगन्धी चुर्ण शरीर पर छिंटकाया, मणिमय व सुवर्णमय आभूषण से शरीर अलंकृत किया, याने अठारहसरा हार, नवसरा अर्धहार, त्रिसरा हार, लंबायमान मोती *का झंबनक व कमर में कंदोरादि पहन कर सुशोभित बने। गले की शोभा बढाने वाले सभी प्रकार के, आभूषण धारण 55 100-10000001930
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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