SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ' वहां मध्यमें स्थापित करो। तुमने जो जो सभी तैयारीयाँ कर ली है ऐसी खबर मुझे शीघ्र दो । तत्पश्चात् उन कौटुंबिक पुरुषों को सिद्धार्थ राजा के द्वारा ऐसा कहे जाने पर कौम्बिक पुरुष हर्षित हुए, संतुष्ट हए यावत् प्रफुल्लित हृदय वाले होकर दो हाथ जोड़कर यावत् दश नाखूनों को मिलाकर, आवर्त रचकर मस्तक पर अंजलि, लगाकर "जैसी आप * स्वामी आज्ञा करते है, उसी मुताबिक करेंगे।" इस प्रकार सिद्धार्थ राजा की आज्ञा के वचनों को विनयपूर्वक स्वीकारते हैं। स्वीकार करके सिद्धार्थ राजा के वहां से निकलते हैं, निकलकर के जहां बाहर का सभागार हैं वहां आते हैं। आकर के बाहर के उस सभामण्डप को विशेष प्रकार से जल्दी सुगंधित पानी छांटकर पवित्र कर, यावत् बड़ा सिहांसन स्थापन करने तक का सारा कार्य समापन कर देते हैं। संपूर्ण सजावट करके कौटुम्बिक पुरुष जहां सिद्धार्थ क्षत्रिय - है वहां आते हैं। वहां आ करके दो हाथ जोड़ दश नाखून मिलाकर, मस्तक पर आवर्त कर मस्तक पर अंजलि रचकर सिद्धार्थ क्षत्रिय की पूर्वोक्त आज्ञा को वापस लौटाते है यानी “आपकी आज्ञानुसार हमने कार्य पूर्ण कर दिया हैं।" इस प्रकार निवेदन करते हैं। ६०) बादमें सिद्धार्थ क्षत्रिय कल यानी अगले दिन प्रकट प्रभात वाली रात्रि होने पर कोमल कुंपलें खिल उठी 慢慢等慢% 卐ou है '52
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy