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________________ 000000000000 जो संबंध, उसके द्वारा तट की ओर दौड़ता व पुनः लौटता हुआ अत्यन्त देदीप्यमान और दर्शकों के प्रेम को उत्पन्न करने वाला, बड़े मगरमच्छ, मछलियाँ, तिमिनामक सामान्य मच्छ, तिमिगिल नामके बड़े मच्छ, निरुद्ध तिलि तिलक इत्यादि जो तरह तरह के जलचर जीव, उनकी पूंछों के आघात से उत्पन्न होनेवाला कर्पूर जैसा सफेद झाग का विस्तार है जिसमें ऐसा, बड़ी-बड़ी नदियों के वेग से दौड़कर आता हुआ जलप्रवाह, उनसे उत्पन्न पानी के चक्रवाक वाला, गंगार्वत नामका आवर्त विशेष यानी पानी का घेराव विशेष, उस घेराव में व्याकुल होते हुए और घेराव में रहे हुए होने से अन्य स्थान में निकल जाने का अवकाश नहीं होने से उछलते हुए, और उछल कर पुनः उसी घेराव में गिरते हुए तथा इस कारण चक्राकार फिरते हुए चंचल पानीवाला, इस प्रकार के क्षीर समुद्र को शरद ऋतु के चन्द्र समान सौम्य मुखवाली त्रिशला क्षत्रियाणी देखते है। ११ ___ (45) तत्पश्चात् बारवें स्वप्न में माता उत्तमदेवविमान देखती है। वह देवविमान नूतन उदित सूर्यमण्डल के समान चमकती कान्तिवाला, तेज युक्त शोभावाला, उत्तम जाति के सुवर्ण व उत्तम कोटी की महामणियों के समुह से मनोहर बने हुए एक हजार आठ स्तंभ, उन स्तंभों से देदीप्यमान होता हुआ व आकाश को भी दीपाता हुआ, सुवर्ण पत्र में लटकते मोतियों से अतिशय तेजस्वी बना हुआ, जिसमें देवताओं सम्बन्धी लटक रही पुष्पमालाएं देदिप्यमान हो रही है ऐसा, और जिसमें जंगली भेड़िया, वृषभ, अश्व, मानव, मगरमच्छ, भारंडपक्षी, सर्प, मयूर, किन्नरजाति के देव, कस्तुरिया मृग, रुरुजाती की मृग, 42 000000卐urleyON
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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