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________________ 05000 ऊपर रहा हुआ है। जिसको देखते ही चक्षु प्रसन्नता का कारण बनता है ऐसा सुन्दर यह कलश है तथा इसकी तेज चमकती ज्योति चारों ओर अन्य वस्तुओं को भी प्रकाशित करती है। प्रशस्त लक्ष्मी का आगार-घर है, सभी प्रकार के दुषणों से रहित है शुभ्र, चमकता उत्तम शोभा वाला है। सभी ऋतुओ के सुगन्धित फूलमालाएँ जिसके कंठ भाग में शोभा बढ़ा रही है ऐसा रजत कलश को माता देखती है। (43) उसके बादमें दशवें स्वप्न में त्रिशला क्षत्रियाणी पद्मसरोवर देखती है। वह पद्मसरोवर कैसा है? उदय होते सूर्य किरणो से खिले हुए है ऐसे हजारों पंखुड़ियों वाले सहस्त्र दल बड़े कमलों के कारण सुगन्धित बना हुआ है तथा उन कमलों के रजकण गिरने से जिसका पानी पीत और लाल रंग का दिखता है वैसा, इस सरोवर में चारों तरफ अनेक प्रकार के जलचर जीव स्वेच्छापूर्वक जलपान कर तृप्त हो विचार रहे है, यह सरोवर विशाल लम्बा-चौडा व अगाध है जिसमें सूर्य विकासी कमल, चन्द्रविकासी कमल, लाल बड़े कमल, सफेद कमल आदि अनेकविध, विविध रंग कमलों की शोभा के कारण देदिप्यमान दिखाई देता है। सरोवर की शोभा और रुप बहुत ही मनोहर है, चित्त को आनंद देनेवाला है, जिस के कारण अलिगण भ्रमर व मस्त मक्खियाँ झुंड के झुंड उन कमलों के रस लेने लगी है ऐसे इस सरोवर
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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