SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 000000000000 होते ही कामदेव कामियों को सताता है। फिर यह चन्द्र शान्त सुन्दर रुपवाला है। आकाश मण्डल का मानो विस्तीर्ण सौम्य व चलन स्वभाव वाला तिलक ही न हो? रोहिणी के मन को सुखकारी तथा रोहिणी का पति और अच्छी तरह से उल्लसित ऐसे पूर्ण चन्द्र को त्रिशलादेवी छठे स्वप्न में देखती है। ....... ४०) उसके बाद तिमीर अंधकार पड़ल को तोडने वाला, तेज से जाज्वलयमान, लाल अशोकवृक्ष, प्रफुल्लित केसुडा, तोते की चोंच, व चीरमी के अर्धभाग जैसा लाल रंगवाला, कमल के वन को विकसित करने वाला, ज्योतिष चक्र पर फिरनेवाला होने से उसके लक्षण का ज्ञाता, आकाश तल में दीपक के समान, हिम समुह को पिघलाने वाला, ग्रह मण्डल का प्रधान नायक, रात्रि को मिटाने वाला, उदय व अस्त के समय मुहूर्त पर्यंत सुखपूर्वक देखा जा सके ऐसा, रात्रि में चोरी-यारी विगेरे अन्याय हेतु भटकने वाले स्वेच्छाचारी चोर-व्याभिचारी आदि को अन्याय से रोकने वाला, ठंडी-सर्दी के वेग को अपने ताप से दूर करनेवाला, प्रदक्षिणा के द्वारा मेरुपर्वत के चारों ओर सतत भ्रमण करने वाला, विस्तीर्ण मण्डल वाला एवं अपनी हजारों किरणों से प्रकाशित चन्द्र तारा इत्यादि की शोभा का नाश करने वाला ऐसे सूर्य को माता सातवे स्वप्न में देखती है।..... .......७ 38
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy