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________________ • अन्तर शत्रुओं को जीतनेवाले और जीताने वाले, संसार सागर को तैरने और तैरानेवाले, स्वयं बोध पाये हुए और दूसरों को बोध करानेवाले, स्वयं कर्मों से मुक्त और दूसरों को भी मोक्ष तक पहुंचाने वाले, 8 सर्वज्ञ सब जाननेवाले, सब देखनेवाले, जो स्थान कल्याण रूप है, निश्चल है, निरोगी है, निरन्तर है, नाश नहीं होनेवाला है, किसी भी प्रकारकी पीडा रहित है और जहां पहुंचने के बाद वापस लौटना नहीं होता ऐसे सिद्धिगति नामके स्थान को प्राप्त किया है तथा भयों को जीतनेवाले जिनेश्वरों को नमस्कार हो। तीर्थ का प्रारंभ करनेवाले, अन्तिम तीर्थंकर, पूर्व हुए तीर्थंकरो ने जिनके होने की सूचना दी थी ऐसे और पहले वर्णित सारे गुणोंवाले यावत् जहां पहुँचने के पश्चात फिर कभी लौटना नहीं है ऐसे सिद्धिगति को प्राप्त करने की इच्छावाले ऐसे श्रमण भगवन्त महावीर को नमस्कार हो । - यहाँ स्वर्ग में रहा हुआ मैं वहाँ रहे याने देवानंदा की कुक्षि में रहे हुए भगवान को वंदन करता हूं। वहां रहे हुए • भगवान यहाँ रहे हुए मुझे देखे ऐसा कह करके देवराज इन्द्र श्रमण भगवन्त महावीर को वंदन करते है, नमन करते aton International For Private & Personal Use Only 18 404500 40 4500
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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