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________________ 9 (२९०) इस प्रकार के इस इस स्थवीर कल्प को सूत्र में कहे अनुसार कल्पना, अनुपालना, कक्षा क्रमे धर्ममार्ग के अनुसार जिस प्रकार सच्चा हो उस प्रकार शरीर से छू कर, क्रियान्वित कर, अच्छी तरह से पालन कर, सुशोभन प्रकार से दीपाकर, किनारे तक ले जाकर, जीवन के अन्त तक पाल कर, दूसरों को समझाकर, 3 अच्छी तरह से आराधना कर और परमात्मा की आज्ञानुसार अनुपालना कर कितनेक श्रमण निर्ग्रन्थ उसी भव 卐में सिद्ध होते हैं. बद्ध होते है मक्त बनते है. परिनिर्वाण पाते है और सर्व दःखों का अन्त करते है। दूसरे कितनेक तीसरे भव में सिद्ध होते है। यावत् सर्व दुःखो का अन्त करते है और उस प्रकार से है स्थवीर कल्प का आचरण करने वाले सात आठ भव से अधिक भटके नहीं अर्थात इतने भवों के अन्दर सिद्ध महोते है। यावत् सर्व दुःखो का अन्त करते है। 2 (२९१) उस काल और उस समय में राजगृही नगर में गुणशील चैत्य में बहुत से श्रमण-श्रमणियों, श्रावक-श्राविकाओं तथा बहुत से देव-देवियों के बिच ही बैठे हुए श्रमण भगवान महावीर इस प्रकार कहते है,, 0000000000
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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