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________________ 405001 40 4500 40 500 40 प्रकार के ही आभूषण जिसने पहने हुए है ऐसा वह शक्र याने इन्द्र भगवान को देखते ही आदर और विनय से शीघ्र ही अपने सिहांसन से खडा हुआ, वह सिंहासन से खड़ा होकर अपने पादपीठ (आसन) से नीचे उतरा, उतरकर वह मोती और रिष्ट एवं अंजन नामक कीमती रत्नों से जड़ी हुई और चमकते मणिरत्नों से सुशोभीत ऐसी अपनी मोजडी वहीं आसन के पास ही उतार दी, मोजडी को उतारकर अपने कंधे पर खेस को जनोइ की तरह लगाकर उत्तरासंग करता है, इस प्रकार उत्तरासंग करके उसने अंजली कर अपने दो हाथ मिलाये और इस प्रकार उसने तीर्थंकर भगवत की ओर लक्ष्य रख सात-आठ कदम उनके सामने जाता है, सामने जाकर वह दाहिना घुटना ऊंचा करता है, दाहिना घुटना ऊंचाकर उसने बांये घुटने को जमीन पर झुकाया, फिर शिर को तीन बार जमीन पर स्पर्श कराकर फिर वह थोडा सीधा अडिंग बैठता है। इस प्रकार अडिंग बैठकर कडा और बैरखा के कारण चिपकी हुई अपनी दोनो भुजाओं को इकट्ठी करता है इस प्रकार अपनी दोनों भुजाओं को इकट्ठी कर ओर दश नाखूनों को अरस परस छुआ कर, दोनो हथेलियों को जोडकर शिर झुकाकर मस्तक 16 > 10 500 40 500 40 5
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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