SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वह तालमुख वह दर भवन और ५. शंबुकावर्त शंख के अन्दर के आंटों के समान भ्रमरों का घर होता है। इनको छद्मस्थ साधु-साध्वियों को अच्छी तरह जान-समझकर त्यागना चाहिये । A (२७३) प्र. अब स्नेह सूक्ष्म किसे कहते है ? उ. स्नेह यानी भिनास ऐसी जो शीघ्र दृष्टि गत न हो उसे स्नेह सूक्ष्म कहते है। स्नेह सूक्ष्म भी पांच प्रकार के होते है। वे इस प्रकार से :- १. ओस जो रात में आकाश से पानी गिरता है, २. हिम बर्फ, ३. महिका धूमस, ४. ओले और भीनी जमीन में से निकले हए तृण के अग्रभाग पर बिन्दु रूप जल जो यव के अंकुरादि पर दिखते है। उन्हें छद्मस्थ Fसाधु-साध्वी को अच्छी तरह देख समझकर परिहरना याने त्याग करना चाहिये । (२७४) चातुर्मास रहे हुए साधु भात पानी के लिये गृहस्थ के घर जाना आना चाहें तो उन्हें पूछे सिवाय जाना आना नहीं कल्पता। किस को पूछना सो कहते है। सूत्रार्थ के देन वाले आचार्य को, सूत्र पढ़ाने वाले उपाध्याय को... 206 WATEReDiction
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy