SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 10005000 3 सांख्य शास्त्र में, छंदशास्त्र में, व्युत्पत्तिशास्त्र में, ज्योतिषशास्त्र में और दूसरे भी ब्राह्मण शास्त्रों में तथा । परिव्राजकशास्त्र में यह तुम्हारा पुत्र बहुत विद्वान बनेगा | १०) इस प्रकार से । हे देवानुप्रिये। तुमने उदार स्वप्न देखे है, यावत् आरोग्यप्रद, संतुष्टकारी, आयु में वृद्धि करनेवाले, मंगल और कल्याणकारी स्वप्न तुमने देखे है । ११) इसके बाद देवानंदा ब्राह्मणी रिषभदत्त ब्राह्मण के पास स्वप्न फल सम्बन्धी इस बात को सुनकर, समझकर, खुश हुई, यावत् संतुष्ट होकर दशो नाखून इकट्ठे हो वैसे आवर्त कर, अंजली कर रिषभदत्त ब्राह्मण को इस प्रकार कहने लगी। १२) “ हे , देवानुप्रिय! जो आप भविष्य बताते है, ठीक वैसा ही है, हे देवानुप्रिय! आपका कथन किया हुआ भविष्य वैसा ही है, हे देवानुप्रिय! आपके द्वारा प्रकाशित भविष्य सत्य ही है, है देवानप्रिय! यह निःसंदेह है, हे देवानुप्रिय। मैं भी इस प्रकार की चाहना करती हूँ 000000000000 " हे देवानुप्रिय! मैने आपके इन वचनों को सुनते ही स्वीकार किया है, प्रमाणित किया है, हे देवानुप्रिय! यह आपका वचन
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy