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________________ श्रावण सुद पांचम की रात्रि को नौ मास पूरे होने पर यावत् गर्भ स्थिति पूर्ण होने पर, चित्रा नक्षत में चन्द्रमा का योग प्राप्त होने पर, पीड़ा रहित ऐसी शिवादेवी ने पुत्र जन्म दिया । यहाँ जन्म महोत्सव इत्यादि श्री महावीर प्रभु की भांति श्री नेनिनाथ प्रभु के नाम से कहना, तथा जन्म महोत्सव समुद्र विजय ने किया तथा उनका नाम अरिष्ट नेमिकुमार हो ऐसा समझना । (164) अर्हन् अरिष्टनेमि दक्ष थे । वे तीन सौ वर्ष तक गृहवास में रहे । उसके पश्चात अपने आचार के अनुसार लोकांतिक देवों ने उन्हें उद्बोधन किया इत्यादि सारा वर्णन पूर्व की भांति समझना । अब वर्षा ऋतु का प्रथम मास, दूसरा पक्ष याने श्रावण शुक्ल पक्ष आया तब श्रावण शुक्ल छट्ट के दिन चढते पहोर जिनके पिछे देव, मनुष्य और असुरों की मण्डली चल रही है, ऐसे अरिष्ट नेमि उत्तरकुरा नाम की शिबिका में बैठकर द्वारिका नगरी के बिचोबिच होकर जहाँ रैवत नामक उद्यान है, वहाँ आते है। वहाँ आकर अशोक नामक उत्तम वृक्ष के नीचे शिबिका को खड़ी रखते है। उसके पश्चात् उस शिबिका से नीचे उतरते है। फिर स्वंय आभूषण elated For me t o Use Only
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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