SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4045 12405014050040 हजार श्राविकाओं की, साढ़े तीन सौ जिन नहीं फिर भी जिनके जैसे और सभी अक्षरों के संयोगो के ज्ञाता याने चौदह पूर्वधरों की, चौदह सौ अवधि ज्ञानियों की, एक हजार केवलज्ञानियों की, ग्यार सौ वैक्रिय लब्धि वालों की और छः सौ ऋजुमति ज्ञान वालों की उत्कृष्ट संपदा हुई। उनके एक हजार श्रमण, दो हजार आर्याएं सिद्ध बनें यानें मोक्ष में गये। उनके साढ़े सात सौ विपुलमतियों की, छः सौ वादियों की और बारह सौ अनुत्तर विमान में जाने वालों की संपदा हुई । १५८) पुरुषादानीय अरिहंत पार्श्वनाथजी के समय में दो प्रकार की अंत कृदभूमि हुई वो इस प्रकार से एक तो युगांतकृत और | दूसरी पर्यायांतकृत भूमि, अरिहंत पार्श्वप्रभु से चौथे युग पुरूष तक युगान्तकृत् भूमि थी याने चौथे युग पुरूष तक मुक्ति मार्ग चला था । अरिहंत पार्श्व का केवली पर्याय तीन वर्ष का हुआ याने उनको केवलज्ञान होने के पश्चात् तीन वर्ष बीत जाने पर किसी | केवली ने संसार का अंत किया अर्थात् पार्श्वप्रभु को केवलज्ञान उत्पन्न होने के तीन साल पश्चात् मोक्ष मार्ग प्रारंभ हुआ इस समय को पर्यायातकृद् भूमि कहते है। १५९) उस काल और समय में तीस वर्ष तक गृहवास में रहकर, त्यासी रात-दिन छद्मस्थ पयार्य को प्राप्त करके, | संपूर्ण नहीं किन्तु थोडे न्यून सित्तर वर्ष तक के केवली पर्याय का पालन कर, संपूर्ण सित्तर वर्ष तक श्रामण्य पर्याय 132
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy