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अर्थात् भगवान सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और दुःखों का अन्त याने नाश करने वाले बने-निर्वाण पाये और उनके सारे दुःख मिट गये।
भगवान का जब निर्वाण हुआ तब चंद्र नाम का दूसरा संवत्सर चल रहा था, प्रीतिवर्धन नाम का महिना था, नंदिवर्धन नामक पक्ष था, अग्निवेश्य नामक दिन था जिसका दूसरा नाम 'उवसम ऐसा कहा जाता है, म देवानंदा नामक रात्रि थी जिसका दूसार नाम ‘निरइ कहा जाता है, उस रात्री में अर्थ नामक लव, मुहूर्त नामक & प्राण, सिद्ध नामक स्तोक, नाग नामक करण, सवार्थसिद्ध नामक मुहूर्त था ठीक स्वाति नक्षत्र का योग आया
हुआ था। ऐसे समय में भगवान का निर्वाण हुआ और उनके सारे दुःख दर्दो का अन्त हो गया।
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१२४) जिस रात में श्रमण भगवान महावीर काल धर्म पाये उस रात में बहत से देव-देवियां नीचे आते व ऊपर जाते हए होने से चारों ओर प्रकाश फैल रहा था।