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________________ व बडी सेना, बड़े वाहनों, बडे समुदायों और एक साथ बजते वाजिंत्रो के साथ याने शंख, ढोल, बड़ी ढ़ोल, भेरि झालर, नोबत, खन्जरी, रणसींगा, हुडुक नाम नामदेव की नाद सह भगवान कुण्डलपुर के बिच में से होकर निकलते है। जहां ज्ञातखण्ड वन नामक उद्यान है, उसमें जहां उत्तम अशोकवृक्ष है वहां आते है। hal ११४) वहां आकर के उत्तम अशोकवृक्ष के नीचे अपनी पालखी को स्थापन करवाते है। स्थापन करवाकर, पालखी में से नीचे उतरते है। नीचे उतरकर स्वयं ही आभूषण-माला प्रमूख अलंकारों को उतारते है। अलंकारदि उतारने के पश्चात् अपने ही हाथ से पंचमूष्टि लोच करते है याने चार मुष्ठि से शिर के और एक मुष्ठि से दाढ़ी-मूंछ का लोच करते है। इस प्रकार से केश लुंछन कर निर्जल छट्ट तप से युक्त खान-पान का त्याग कर याने इस प्रकार से दो उपवास किये हुए भगवान हस्तोत्तरा नक्षत्र याने उत्तराफाल्गुणी नक्षत्र का योग आने पर देवदुष्य वस्त्र ग्रहण कर अकेले ही कोई दूसरा साथ में नहीं इस प्रकार से भाव से मुंड होकर, गृहवास से निकलकर अनगारता को 97 40 500 40 500 40 500 40
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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