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॥श्री गणिविज्झा सूत्रं ॥
'वुच्छे बलाबलविहिं नवबलविहिमुत्तमं विउपसत्थी जिणवयणभासियमिण पवयणसत्थमि जह दिटुं॥१॥८४७॥ दिवस तिही। नक्खत्ता करणग्गहदिवसया मुहुत्तं चोसउणबलं लग्गबलं निभत्तिबलमुत्तमं वावि ॥२॥ होराबलिआ दिवसा जुण्हा पुण दुब्बला उभयपक्खे। विवरीयं राईसु बलाबलविहिं वियाणाहिं ॥३॥दारंपाडिवर पडिवत्ती नस्थि विवत्ती भणंति बीआए।तइयाए अत्थसिद्धी विजया पंचमी भणिया ॥४॥जा एस सत्तभी सा उ बहुगुणा इत्थ संसओ नत्थिो दसभीइ पत्थियाणं भवंति निकं या पंथा ॥५॥ आरूम्गमविग्धं खेभियं च इक्कारसिं वियाणाहि। जेविह हुति अमित्ता ते तेरसी पिटुओ जिण॥६॥चाउद्दसिंपन्नरसिं वजिजा अटुमि च नवनिं च। छट्टि चउत्थिं बारसिं च दुण्हपि पक्खाणं ॥७॥ पढभी पंचमि दसमी पन्नएसिक्कारसीविय तहेव। एएसु य दिवसेसुं सेहे निक्खमणं करे ॥८॥ नंदा भहा विजया तुच्छ। पुन्ना य पंचभी होइ। मासेण य छव्वारे इक्किकावत्तए नियए॥९॥नंदे जए य पुन्ने, सेहनिक्खभणं करे। नंदे भद्दे सुभहए, पुन्ने अणसणं करे ॥ १०॥ दारं। पुस्सऽस्सिणिमिगसिररेवई य हत्थो तहेव चित्ता यो अणुराहजिट्ठभूला नव नक्खत्ता गमणसिद्धा॥१॥ भिगसिर महा य भूलो विसाह तहचेव होइ अणुराहा। हत्थुत्तर रेवइ अस्सिणीय ॥ श्री गणिविन्झा सूत्र ॥
| पू. सागरजी म. संशोधित
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