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________________ || 61 || Jain Education In श्री जिनबिम्बविधान अंजनशलाका तथा प्रतिष्ठा माटे ना प्राचीनतम महत्वना ग्रन्थ तरीके निर्वाणकलिका ग्रन्थ छे. आ ग्रन्थनी रचना महान आचार्यदेव श्रीमत्पादलिप्तसूरीश्वरजी महाराजे करी छे, जेम तेमणे जिनविम्ब विधान उपरांत नित्यकर्मविधि, दीक्षा विधि, आचार्याभिषेकनी विधि छे तथा जिनबिम्ब अने जिनमन्दिर अंगेना विधिविधानमां भूपरीक्षा, भूमिपरिग्रह, शिलान्यास प्रतिष्ठा विधि पादप्रतिष्ठा द्वार प्रतिष्ठा विवप्रतिष्ठा (अंजनविधि) अतिशय स्थापना, हृत्प्रतिष्ठा, चूलिका प्रतिष्ठा, चूलिका ध्वजकलश धर्मचक्र प्रतिष्ठा, वेदिका लक्षण ते जिनबिंत्र जिनमन्दिर जीर्णोद्धार विधि आदि आलेख्या छे. उपरांत विविध ६३ मुद्राओ श्री तीर्थङ्करदेवोना लंछन-वर्ण- राशि -नक्षत्रो - यक्ष-यक्षिणीनां स्वरूप, श्रुतदेवता शांतिदेवता १६ विद्यादेवीओना स्वरूप, दशदिक्पाल - ग्रह, ब्रह्मशांति, क्षेत्रपालादिनां स्वरूप आप्या छे. अन्तर्गत सर्वतोभद्र मंडल, जापविधि, कलशवर्णन, शङ्खवर्णन, तोरणप्रकार वर्णन, नंदावर्त रचना, नंदावर्तपूजन, देवद्रव्य वर्णन तेमज संक्षेप प्रतिष्ठादिना विधानो संग्रहित कर्या छे. आम आ ग्रन्थ आ विषयमा अजोड प्राचीन अने महत्वनो ग्रन्थ छे. जेना अभ्यास द्वारा प्रतिष्ठा आदि विधानोना ari रहस्य प्राप्त थइ शके तेम छे । आ ग्रन्थ कह सालमा बनाव्यो ते स्पष्ट उल्लेख नथी, तेपणे निर्वाणकलिका उपरांत प्रश्नप्रकाश (ज्योतिष), (तपगच्छ पट्टावली ) तरंगलोला (विशेषावश्यभाष्य सुजय तरंगवती), कालज्ञान ( कल्प चूर्णिमां उलेख ), ज्योतिषकरंडक टीका ( जैन परम्परा इतिहास ), गाहाजुअल ( सुवर्णसिद्धिना आम्नाय साथे वीर For Private & Personal Use Only 1119 11 wwwww.jainelibrary.org
SR No.600015
Book TitleNirvankalika
Original Sutra AuthorPadliptsuri
AuthorJinendravijay Gani
PublisherBhuvan Sudarshan Jain Granth Mala Devali Rajasthan
Publication Year1981
Total Pages104
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Literature, & Art
File Size7 MB
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