________________
कुल और वंशों में संहृत-स्थापित करें । अतः मेरे लिये यह निश्चितरूप से थेयस्कर है कि पूर्व तीर्थकरों द्वारा निर्दिष्ट, श्रमण भगवान् महावीर चरम तीर्थकर (जीव) को माहणकुण्डग्राम नामक नगर से कोडालगोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की भार्या जालन्धरगोत्रीया देवानन्दा की कुक्षि से (संहृत कर), क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर में ज्ञातवंशी काश्यपगोत्रीय सिद्धार्थ क्षत्रिय की पत्नी वाशिष्ठ गोत्रीया त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में गर्भरूप में संचारित-स्थापित करू। और जो उस त्रिशला क्षत्रियाणी का गर्भ है, उसे जालंधर गोत्रीया देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में गर्भरूप में स्थापित करूं।" शक्र इस प्रकार पर्यालोचन करता है। इस प्रकार पर्यालोचन करके पैदल सेना के अधिपति हरिनैगमेषी देव को बुलाता है। पदातिसेना के सेनापति हरिनैगमेषी को बुलाकर वह इस प्रकार कहता है:
I should therefore have the embryo of the last Tirthankara taken from the womb of Devānandă
to that of Trišala, the kşatriya-lady of Vasistha ____gotra, belonging to the Jhāta clan, living in the
ksatriya-sector of the same town of Kundagrāma. I should in exchange have the embryo now in the womb of Trišală carried to the womb of Devānanda." Having formed this resolution, Indra called the chief of his foot-soldiers, the god Harinaigamesi and apprised him of his thoughts:
ong
कल्पसूत्र
www.jainelibrary.org
For Private & Personal Use Only
Jain Education International