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पुण एवमाहंसु-नो कप्पइ जाव उवस्सयाओ परेण सत्तघरंतरं संखडि सन्नियट्टचारिस्स इत्तए। एगे पुण एवमाहंसु-नो कप्पइ जाव उवस्सयाओ परंपरेण संडि सन्नियट्टचारिस्स इत्तए ॥२५२॥ "
वासावासं पज्जोसवियस्स नो कप्पइ पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स कणगफुसियमित्तमवि वुट्टिकायंसि निवयमाणंसि पज्जोसवित्तए ॥२५३॥ वासावासं पज्जोसवियस्स पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ अगिहंसि पिंडवायं पडिग्गाहित्ता पज्जोसवित्तए, पज्जोसवेमाणस्स सहसा वुट्टिकाए निवएज्जा, देसं भुच्चा देसमादाय पाणिणा पाणि परिपिहित्ता उरंसि वा णं निलिज्जिज्जा, कक्खंसि वा णं समाहडिज्जा, अहाछन्नाणि वा लेणाणि वा उवागच्छिज्जा, रुक्खमूलाणि वा उवागच्छिज्जा, जहा से पाणिसि दए वा दगरए वा
कल्पसूत्र ३३०
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