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की आज्ञा पुनः अर्पित करते हैं अर्थात् आदेशानुसार कार्य सम्पन्न कर दिया है, ऐसा कहते हैं । ६०. पश्चात् सिद्धार्थ क्षत्रिय रात्रि व्यतीत होने पर । तथा प्रभातकालीन प्रकाश के समय शय्या से उठता है। उस समय सूर्य विकासी उत्पल कमल की केशरिकाएं विकसित होने लगी हैं, पाण्डुर - उज्ज्वल प्रभा होने लगी है, रक्त अशोक के प्रकाश, किंशुक (केसु) के रंग, तोते के मुख, गुंजा -चिर्मी के अर्द्ध भाग के लाल रंग के समान, जलाशयों में कमलों को विकसित करने वाला, बन्धुजीवक-रक्तपुष्प, कबूतर के चरण और नेत्र, कोयल के पारक्त लोचन, जासू के फूलों का ढेर, हिंगुल का समूह इत्यादि लाल वस्तुओं से भी अधिक रक्तवर्ण से दोप्त तथा शोभायुक्त, यथाक्रम से सूर्य के उदित होने पर उसकी किरणों के हस्तप्रहार से अन्धकार का नाश हो गया है, उसकी प्रारंभिक किरणों के तेज से मानो समग्र जीवलोक कुंकुम जैसे लाल रंग से भर गया है, ऐसे तेज से प्रदीप्त हजार किरणों वाले विक्रान्त सूर्य के उदित होने पर शय्या से उठता है। ६१. (सिद्धार्थ क्षत्रिय) शय्या से उठकर पादपीठ से नीचे उतरते हैं। पादपीठ से उतरकर जहां व्यायामशाला है वहां पाते हैं। वहां आकर व्यायामशाला में
60. Next day, early at dawn, with the light yet pale, when the tender kamala and utpala lotuses had opened their petals, the sun shone red. Its colour could be compared with a red aśoka flower, or kisinsuka-blooms, or the beak of a parrot, or the red shell of agnija-berry, or the bandhujiva-flower, or the eyes and feet of a pigeon, or the eyes of a cuckoo, or a bunch of China-roses or a heap of hingula. The sun rose slowly, dispelling the darkness with his rays, and filled the world with kum-kum-coloured sunshine. As the thousandrayed sun glowed radiantly, king Siddhartha rose from his bed.
कल्पसूत्र १०१
61. He climbed down the foot-stool of his bed and walked down to his gymnasium. He applied
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