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________________ सं० तरंग सउणगणाणं व तत्थ नाणाविहे सद्दे ॥६५॥ भणि(वि)यव्यया अम्हं महाभए तत्थ वट्टमाणाणं । अणुलोमा आसि तया खेमा वईकहा ॥६८॥ | मिगपक्खिणो सव्वे ॥६६॥ वणहत्थिहत्थपल्हत्थिये छलुयफलकिसलयपवाले । गोडियविडिवे(डवि) विडिमी(मा) कत्थइ पासामि हं पडिए ॥६७॥ एते अण्णे य बहु तत्थ अवत्थंतरे तरुमाणेणं । पासंता तं तारं तरिमे अह भणइ तरिमे ॥६८॥ अह भणइ तक्करो णेमि कतारं ति मा हु भाइत्था । अह गामा अब्भासे बच्चेह एतो अवरहुत्ता ॥६९।। अहमवि गच्छामि उ खम(मा)हि य जं सामियस्स आणाए । अण्णाणएण य मए बद्धा य हया य पल्लीए ॥७०॥ मे(वि)रलमहुरसंगयमियक्खरं भणइ तं सही पत्तो। अह तक्करं गुणकरं पिओ पियंतो अ दिट्ठीए ॥ ७१ ॥ तुम्हं आणाकारी तुम्मे उवयारकारिणो अम्हं । जं नेअवन्तवाणं जीवियदाणं इमं दिणं ॥७२॥ अत्ताणमसरणाणं अम्हाणं जीविए निरासाणं । उब्बद्धयाणं अम्हं छिण्णासु(माणं) तुमे वीरा ॥७३॥ अहयं वच्छपुरीए पुत्तो धणदेवसत्थवाहस्स । नामं च पउमदेवो ति मझं जो को वि साहेज ॥ ७४ ॥ भणिओ य एहि तहियं अत्थं दाहामु ते सुविउलं पि। सो भणइ इजाइ महं ततो गंतुइ तो गच्छं ॥७२(१)|| जइ होज समावत्ती गमणं भे तत्थ कारणं तो। मा हुम न दच्छिहा एत्थ मए साविओ सि तुमं ॥ ७६ ॥ नह सका परिकाओ केणइ सम्बंमि जीवलोयंमि । जियलोय| सव्वसारं जीवियदाणं पादत्तस्स ॥७७॥ अम्हं अणुग्गहत्थं नणु तुब्भेहि बहुमाणपीइकरो । आसणपरिग्गहो निग्गहेण कायदओ होइ ॥७८॥ सो भणइ ए(वं) भणिओ नेणुहत्तणो अणुग्गहियओ य । सव्वं व मे कयं एव होइ जं मे(मे) त्थ परितुट्ठा ॥७९॥ 10 सो एवं जंपमाणो बच्चह तुम्भेहि भाणिऊण म्हे। बच्चइ उत्तरहुत्ते अम्हे वि गया अवरहुत्ता ।। ८० ॥ निजजिफोड विगलेते Deeeeeeeer000 ॥ ६८॥ Jain Education L illa For Private & Personal Use Only W ainelibrary.org
SR No.600009
Book TitleTarangvaikaha
Original Sutra AuthorPadliptsuri, Nemichandrasuri
Author
PublisherJivanbhai Chotabhai Zaveri
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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